मेरा देश कितना बदलता जा रहा है।
मेरा देश चुनाव के चक्रव्यूह में फंसता जा रहा है
नेता अपना मतलब साधता
देखिए विकास बेचारा कितना बेबस बनता जा रहा है
धर्म युद्ध प्रारंभ है यहाँ
गीता और कुरान का खून सडकों पर बहता जा रहा है
समस्याओं से पिड़ित जनता
प्रजा का दर्द प्रतिदिन सुरसा के मुंह सा बढ़ता जा रहा है
अपराध से गठबंधन है उनका
जन समुदाय का विश्वास अब न्याय से उठता जा रहा है
भष्ट्राचार में लिप्त प्रतिनिधि
भष्ट्राचार से उन्मूलन का नारा मुखर हो कहता जा रहा है
जनता का विकास ढोंग है
वास्तव में नेताजी का धन और वैभव निखरता जा रहा है
अधिकारों का कानून है केवल
इन्हीं अधिकारों का हनन नेता बखूबी करता जा रहा है
मूर्ख बनाओ अभियान जारी
नेता कहे सर्व शिक्षा अभियान में देश पढ़ता जा रहा है
परिवर्तन ही अटल सत्य है
इसी कारण देखो ना आदित्य मेरा देश कितना बदलता जा रहा है
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.