मेरा दिल क्यो मचल रहा है
मेरा दिल क्यो मचल रहा है,
ये मौसम क्यो बदल रहा है।
इस मौसम ने किया है जादू,
अपने आप ये बहल रहा है।।
कुंवार में सावन बरस रहा है,
मन मिलने को तरस रहा है।
जल्द आ जाओ साजन मेरे,
दिल मेरा अब तड़प रहा है।।
सूर्य भी अब अस्त हो रहा है,
चंद्रमा भी अब निकल रहा है।
शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में,
विरहणी का दिल मचल रहा है।।
फिजाओ का रंग बदल रहा है,
शरद ऋतु का स्वागत हो रहा है।
ऐसे में शोले क्यो नही भड़के,
जब सब कुछ यहां बदल रहा है।।
नन्ही नन्ही फुआरे पड़ रही है,
ठंडी ठंडी हवाएं चल रही है।
ऐसे इस सुहावने मौसम में,
ये भी किसी से कुछ कह रही है।।
कुंवार भी अब खत्म हों रहा है,
कार्तिक आने को मचल रहा है।
आ जाएगा त्यौहारों का मौसम,.
किसके लिए ये मचल रहा है।।
ऐसा मौसम सदैव चलता रहे,
जब तक ये सांसे चलती रहे।
समा लू दिल में ये चेहरा तेरा,
हम तुमसे सदा बाते करते रहे।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम