मेरा जो रुदन,तुम्हारा हास
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कोई तो
इतिहास बनाकर हाथों में हथियार।
युद्ध करने होते हैं तैयार ।
ऐसे हथियारों को लेकर कैसे
वे रण में हैं निकल पड़े।
उन इतिहासों में जो अहंकार था
भरा हुआ।
योद्धा से ज्यादा हत्यारा था
खड़ा हुआ।
इतिहास लिए फिरते हैं वे
और इसे हथियार बनाकर
तथा उठाकर घूम रहे।
कर रहे गर्व से उन्नत सिर।
पुरखे मेरे थे महाबली।
वैभव संचय को बाहुबली।
चाहे उत्पीड़न‚शोषण‚लूट–मार‚हत्याओं से।
कहते करना था शर्म।
कर रहे किन्तु, हैं गर्व।
बड़ा दु:खपूर्ण‚बड़ा आश्चर्य।
अधिकार कुचलकर‚पीड़ित कर
जन–जन को
वैभव जमा किया।
अरे‚समाहित है इन
इतिहासों में रक्त।
प्रशस्त मन को कर देता ध्वस्त।
इसे चमकाना कर दे बंद।
वेदों और ऋचाओं में
मन्त्रों में या फिर उन शास्त्रों में
शब्द सभी अभिशापित हैं।
मढ़े हुए हैं अर्थ असत्य से आख्यायित।
और यही, इसे यहाँ
हथियार बनाकर हाथों में
चहुँदिश
अबाध हैं घूम रहे।
कुछ कुटिल कहकहे,
है वसुंधरा को ताक रहे।
इतिहास बनाने अस्त्र–शस्त्र
वह झाँक रहे।
इतिहास नहीं हो तेरा कभी हथियार।
मत इसे बना यूं यार ।
यह सभ्यता‚संस्कृति का
धर्म‚कर्म और मर्म।
इसे करने देना सत्कर्म।
भविष्य का पथ करना है दर्म।
इसका इतना है माने।
व्यवहार नहीं दु:ख फैलाने।
ऐसे इतिहासों को
हथियार बनानेवालों को
आओ रोको।
संकल्पित मन‚चैतन्य हो तन
और कर अगाध तेरा नैतिक बल।
करना तुझे आत्म संचयन ।
यह वक्त
विलक्षण करना है।
ऐसे इतिहासों से प्रहार
नहीं है देना होने।
इतिहासों में वर्णित है जो युद्ध
उसकी पीढ़ी की सीढ़ी पर मैं स्थित।
जीत मेरा अधिकार ।
मुझे मत कह गली के गुंडे।
मारूँगा अगनित डंडे।
आज पुन: वह मेरा
स्वेच्छाचार।
इतिहासों में कहीं न मुझ प्रजा की कथा।
या उत्पीड़न की ही व्यथा,
बलात्कार से उपजे थे जो दर्द।
क्षुधा से उदर का अथवा रुदन,
प्यास से झुलसे ओठों की चीख।
मेरे बचपन का मांगना भीख।
इतिहासकार थे शायद क्रीत।
काश! प्रजा के होते मीत।
इतिहास के पन्ने हमारे लिए
हैं दरके।
तुम्हारे लिए स्वर्ण-पत्र पर लिखित
शब्द में स्वर्ण के अक्षर भरे।
तुम संभ्रांत,तुम्हारे लिए शस्त्र
इतिहास।
मैं असंभ्रांत मेरे लिए भ्रष्ट एक शास्त्र
वही इतिहास।
मेरा जो रुदन,तुम्हारा हास।
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