मेरा जीवन
मेरा जीवन
खेत की पगडंडियों पर
उगी हुई हरी घास पर
पड़ी हुई ओंस की बूंदे
ज्यों——- ?
बनती और सिमट जाती है
हे प्रभू दया करो मुझ पर
ऐसा क्षण भंगूर जीवन देकर
जैसे ओंस कुछ देर के लिए
लेती है जन्म और फिर
जन्म की भांति ही
मिट जाती है ।
पर उसकी अमिट हस्ती
मिटकर भी नही मिट पाती है ।
आखिर वह अमिट चमक
मन पर छाप छोड़ जाती है ।
चाहे जीवन छोटा हो पर
छाप ऐसी होनी चाहिए
चमक मोती सी आए मुझमें
तेरे सहारे मैं लटकूं
दुखों की बयार चाहे चलें
पर तुझ से मैं ना छूंटूं
चाहे धूप खिलें या प्रभू
चाहे कोई बादल आए
मैं तनिक भी ना घबराऊं
दीये की लौ की भांति
मैं कभी ना टिमटिमाऊं
एक जगह पर रहूं अड़ा
कभी ना मैं डगमगाऊं
मर जाऊं मिट जाऊं
पर अपनी छाप
इस जग में
अमिट पत्थरों पर लिख जाऊं ।
-0-
नवल पाल प्रभाकर