मेरे जग्गू दादा
१५ साल बाद जगन्नाथ पुरी जाने का संयोग बना। एक बार बीच में गयी थी जगनाथ जी, किन्तु ऐसा उत्साह पहले कभी नहीं हुआ जैसा इस बार की यात्रा में हुआ । जिस समय मैं पुरी धाम स्टेशन पहुंची, उस समय इस्कॉन के कुछ भक्त गीता वितरण कर रहे थे | उन्हें देखकर ऐसा लगा जैसे वो मेरे अपने हैं और मैं किसी अनजान जगह नहीं आयी हूँ |
स्टेशन से बहार निकलते ही मेरी जग्गू दादा से मिलने की अधीरता बढ़ गयी | आश्रम पहुंचने तक मैं उन्ही के बारे में सोचती रही, इसीलिए आश्रम पहुंचते ही थोड़ा मुँह हाथ धोकर निकल गए उनके दर्शन करने के लिए |
मंदिर जाते समय मुझे बचपन में किया गया उनका दर्शन याद आ रहा था |
मझु याद है, बचपन में उन तीनो भाई बहन को देखा था,एकदम सामनेसे, एक काला पत्थर वाला
अँधेरा बड़ासा घर,वहां सबसे पहले सबसे बड़ेदादा बलराम दाऊ, बीच में सुन्दर सी प्यारी सी बहन सभु द्रा और दाएं
तरफ हमारे सबसे प्यारे जगन्नाथ जी( मेरे जग्गूदादा) । भक्तों की बहुत भीड़ होती है , फिर भी हम उन्हें देख सकते हैं क्युकी वो तीनो बहुत बड़े हैं , उनकी आँखे बड़ी , छोटे छोटे हाथ | एकदम सामने से उन तीनो के देख सकते थे | यही सब मुझे याद आ रहा था , मंदिर जाते समय की कब पुनः मुझे उनके दर्शन होंगे |
मंदिर के पास पहुंचकर जब मैंने मंदिर की ऊंचाई, उसकी भव्यता और उस पर लहराता पताका देखा तो ,मेरे आनंद की तीव्रता और दोगुनी हो गयी | भागते भागते मंदिर के अंदर गए तो, ज्ञात हुआ की जग्गू दादा अभी दर्शन नहीं दे रहे हैं | ८ बजे मंदिर का द्वार भक्तों के लिए खुलेगा, तब तक उत्साह और आनंद दोनों को नियंत्रण में रखते हुए, हमे प्रतीक्षा करनी होगी |
ठीक हैं यही सही, आये हैं तो दर्शन करके ही जायेंगे | वो प्रतीक्षा करवाएंगे और हम प्रतीक्षा करते रहेंगे , किन्तु बिना दर्शन लौटेंगे नहीं|
कुछ समय भक्तों के साथ प्रतीक्षा करने के बाद ८ बजा और मंदिर का द्वार खुला |एक एक करके भक्त अंदर जाने लगे और मैं भी उन भक्तों के साथ कदमताल मिलते हुए मंदिर की सीढिया चढ़ती गयी |
पुराणों में ऐसा वर्णन है की , गरुण जी भगवन के वहां हैं |इसीलिए मंदिर के अंदर सबसे पहले बहगवां से कुछ दूरी पर ही , एक गरुण स्तम्भ है |
चतै न्य महाप्रभु जब भी भगवान के दर्शन करने आते थे तब, वहां खड़े होके, भगवान के श्री कमल नयन को देखते रहते थे। तो हम भी पहले गरुण स्तम्भ गए , स्तंभ को प्रणाम एवं आलिंगन किया। तत्पश्चात
धीरे धीरे बाकी भक्तो की भीड़ में भगवान के दर्शन करने के लिए आगे बढ़ते गए। ऐसी मान्यता है की,भगवान के दर्शन सदैव उनके श्री चरण कमल से करना चाहिए, किंतु उन तीनो भाई बहन के नेत्र इतने विशाल हैं, की चरण कमल से ही श्री नेत्र के दर्शन होने लगते हैं |
मंदिर के अदरं बहुत ही ज्यादा संख्या में भक्त गण मौजूद थे , क्युकी जग्गू दादा इतनी देर बाद जो ए थे दर्शन देने के लिए | तो मैं जब गरुड़ स्तंभ से आगे बढ़ने लगी तो, पहले दर्शन बीच में बैठी हुई प्यारी सी सभुद्रा महारानी की हुई, जो एक बहोत सुन्दर सी मुस्कान के साथ वो अपने भक्तो को दर्शन दे रही थीं । थोड़ा और आगे बढ़ी तो छोटे से दरवाजे के पीछे बायीं ओर बलराम दाऊ के दर्शन हुए , वो अपने बहन के साथ आराम से बठै हुए सभी भक्तो को देख रहे थे और आनंद ले रहे थे।
किंतु मेरे जग्गूदादा कहाँ हैं? उनको क्यों नहीं देख पा रही मैं अभी
तक😔। कहाँ छुप के बैठे हो ? आप जग्गूदादा, जल्दी से दर्शन देदो ना|
थोड़े कदम चलने के बाद, सामने
देखा लाल और सफेद रंग से उनके नेत्र , काले से घर में अपने सबसे प्यारे काले से जगन्नाथ जी चुपके दायीं ओर बैठे हैं । इतने आसानी से वो किसी को दर्शन नहीं देते है, वो अपने लिए प्रेम देखते हैं प्रयास देखते
हैं, तब उनका थोड़ा दर्शन मिलता है , नटखट जो हैं हमारे कान्हा। जब उनका एक झलक दर्शन मिला,
तो ऐसा लगा कितने वर्षों से मैं इंतजार कर रही थी, इस एक झलक के लिए।
हे भगवान आप , कितने दयालु हैं क्युकी अपने मुझे अपना दर्शन देने के लिए यहाँ तक बुला ही लिया |
। बस उनके दर्शन करते हुए मैं ये सोच ही रही थी की , भक्तों के भीड़ में धक्के खाकर मुझे बहार निकलना पड़ा | तभी मैं ये थान ली की मैं कल सुबह फिर आउंगी आपके दर्शन के लिए | क्या मुझे अधिकार नहीं की मैं आपके दर्शन समीप से करू और आपको आलिंगन कर सकू ? ये सब सोचते सोचते मैं उस रात को वापस आ गयी आश्रम।
अगले दिन सुबह सुबह नहा धोके उनके दर्शन के लिए पुनः निकल गए। मंदिर जाते समय सुना की उस दिन मंदिर खुला ही नहीं, पिछले रात जगन्नाथ जी थोड़े देर से सोए थे, तो आज उनको उठने में थोड़ी देरी हो गयी ।
मैं सोच रही थी, जो भगवान हर रोज हम लोगो के जागने से पहले उठ जाते हैं , आज वो उठ तो गए ,किंतु कोई आके उनकी सेवा नहीं किए , तो वो किसी को दर्शन भी नही देंगे। चलो सब्र का फल मीठा होता है , ३० मिनट के बाद मंदिर का सिंह द्वार खलु गया। जगन्नाथ पुरी मंदिर का एक नियम है, अगर
कोई भक्त हिन्दू न हुए तो, उनका मंदिर के अदरं प्रवेश करने नही दिया जाता, तो इसीलिए वैसे भक्तो को दर्शन देने के लिए जगन्नाथ जी के सिंह द्वार के सामने सबसे पहले आरती किया जाता हैं, ताकि बहार से सभी भक्त चराचर जगत के स्वामी जगन्नाथ जी को देख पाए। हम लोग वहा उनका दर्शन करके मंदिर के अदरं प्रवेश किये , दिन में पहली बार भगवान अपने भक्तो को दर्शन देंगे , इसीलिए इतने भीड़ था |
ऐसा भीड़ पहले कभी नहीं देखा, वो दिन हरी का सबसे प्रिय दिन एकादशी था ।
धीरे धीरे हम सब श्री मंदिर में प्रवेश किये , इतने भीड़ में सब भक्त भगवान की एक झलक पाने के
लिए बहुत उत्सकु हो रहे थे| लेकिन आज तो भगवान को और थोड़ा नजदीग से देखने का अवसर मिल रहा था | मैं कल रात को , भगवान से किया हुआ प्रार्थना के बारे में सोचने लगी, की आपको एकबार बोला औरअपने ऐसे मौका दे दिया , आप सच में बहुत कृपालु हैं ।उसदीन हजारों भक्तो के भीर में भी ऐसा लग रहा
था, की भगवान शायद उनके दर्शन कराने के लिए हम सबकी रक्षा कर रहे हैं ,कोई असुविधा अनुभव ही नहीं हुई , बहुत ही आसानी से उन तीनो भाई बहन का दर्शन करके निकल रही थी , तो कोई बोल रहे थे की यहाँ जी को भक्त लोग आलिगनं कर सकते हैं। ये बात सुनके मेरी तो, आनंद का कोई ठिकाना ही नहीं रहा। मैं लोगो से पूछ पूछ के वहां पहुंच ही गई। ‘ बट जगन्नाथ ‘ – जहा जगन्नाथ जी का एक विग्रह हैं , ये
वो विग्रह हैं, जब जगन्नाथ जी स्नान यात्रा के बाद बीमार हो जातेहैं, तब मुख्य मंदिर में उनका दर्शन नहीं
मिल पाता, तब भक्तगण यहां उनके दर्शन के लिए आ जातेहैं।
मैं उनको इतने नजदिग से देखते ही , भागके और नजदीग चली गई, उनको आलिगनं किया, कसके
आलिगनं किया,मुझे ऐसा लगा, के वो मेरे माता, पिता सब हैं, उनके कमर से उनको अपने हाथ से
परिबेस्टन करते समय मुझे जो शांति मिल रही थी मानो वो हमे अपने रक्षा क्षेत्र में बांध लिए हैं, में वो क्षण जाने नही देना चा रही थी। मुझे नहीं जाना था उनको छोड़के। ओ मेरे जग्गूदादा आप कुछ तो करो, मुझे आपको छोड़ के नहीं जाना। संसार में प्रेम नहीं मिलता कही पे भी, किसी के पास समय नहीं होता किसीको
सुनने का , लेकिन भगवान तो सब देतेहैं, आपका सुनते हैं, आपसे बोलतेहैं, और प्रेम भी देते है, उस समय मुझे वो महससू हो रहा था, इसीलिए वो क्षण मझु गवाना नहीं था। किसी ने मेरी माथे पे हाथ से बुलाया और वहां से बाहर निकलना पड़ा।
सुबह ही सोच रहे थे के सबर का फल मीठा होता हैं, इतना मीठा, ये तो नहीं पता था। भगवान इतने
कृपालुहोतेहैं, कोई अगर उनके तरफ एक कदम लेते हैं, तो वो १० कदम अपनेतरफ से लेलेते हैं, उस दिन इस बात का अर्थ समझ आया।
मुझे वो प्रेम चाहिए था, वो शांति चाहिए था, इसी लिए मुझे फिर से उनके पास जाना था। इसी लोभ
से मैं फिर अगले दिन सिर्फ उनको आलिगनं करने के लिए अपनेघर लौटनेसे पहले उनके वहा गई।
उनको फिर आज मेरे सामने पाई। उनको आलिगनं किया, लेकिन आज मुझे वो शांति महससू नहीं हुआ। मैं बहुत ज्यादा निराश हो गई और लौटने की तैयारी करने लग गई। अचानक मुझे नारद मुनि की याद आ गयी , श्रीमद भगवतम के १ स्कंद में हम पढ़े थे|
की नारद मुनि को, उनके पिछले जन्म में बहुत तपस्या करने के बाद भगवान के दर्शन क्षण भर के लिए प्राप्त हुए थे। उसके बाद वो खुद से प्रयास किए थे ,ताकि उनको भगवान फिर दिख जाय, तब भगवान उनको कहे थे , उनका ये मनोकामना उनके अगलेजन्म
में पूरा होगा, तब तक उनको और भी तपस्या करनी होगी। भगवान के प्रयास से या यांत्रिक
पद्धति से नहीं किया जा सकता, वो पूर्ण रूप से उनके ही हाथ में होते हैं। तब मैं सोचने लगी, नारद मुनि तो भगवान के बहुत उच्च कोटि के भक्त हैं, उनको यदि भगवान को प्राप्त करनेके लिए इतना तपस्या करना पड़ सकता हैं , हम तो बद्धजीव हैं वो भी कलि यगु के, हमें तो जन्म जन्मजन्मान्तर तक तपस्या की आवश्यकता हैं। तब समझ आया शास्त्र में जो भी बताया गया हैं, उससे हमारे जीवन का बहुत सारे अनसुलझे प्रश्नों का उत्तर मिल जाता है |