मेरा गोँव
छोड़ आ गये सूखे टीले, जहाँ कभी बीता था बचपन
अमराइयों से मधुर स्वप्न पर यहाँ मिले पाषाण भरे वन
इन निर्मम पाषाण वनों में मिली ना मुझको छाँव रे,
गाँव ढूंढने निकला जब मै मिला ना मेरा गाँव रे….१…
छोटे से सपनों की दुनिया ,बिछड़ चुके अपनों की दुनियां,
गाँव बिचारा कहाँ रहा अब ,पाकर इन सपनो की दुनियां !
बचपन के वो छोटे सपने , जाने कब से बड़े हो गए ,
और और की अभिलाषा में दोराहे पर खड़े हो गए !!
दोराहे पर सोच रहे है अब तो मेरे पाँव रे
गाँव ढूंढने ………………………………!२!
इन सपनों के असमंजस में ,चाहत फिर भी रही अधूरी
सब कुछ पाया हमने फिर भी प्यास नहीं हो पाई पूरी!
पाने खोने के खेलों में, जीवन जाने कहाँ खो गया.
नाम कमाने की धुन में , वो भोला बचपन कहाँ सो गया !
उस बचपन को कैसे पायें ,मिली ना उसकी ठांव रे .
गाँव ढूंढने ………………………………………..!३!
नीम और पीपल के नीचे , भरे हुए वो पीपल गट्टे ,
लाल मिर्च की चटनी से वे सने हुए रहते सिलबट्टे !
बैलो के मीठे घुंघरू की , आवाजें अब कहाँ खो गई ,
रोज सुनाती थी जो किस्से ,दादी अम्मा कहाँ सो गई !
ले जाती थी दादी अम्मा सुख सपनों के गाँव रे,
गाँव ढूंढने ……………………………………….!४!
भूल गए वो पनघट ,पानी,जहाँ कभी बसता था जीवन
मिले नहीं वो ताल तलैया ,जिनको ढूंढ रहा अंतर्मन!
अंतर्मन की अभिलाषाएँ , गिल्ली डंडे ढूंढ रही हैं
बचपन में बचने को सोचे वो हथकंडे ढूंढ रही है !
नहीं मिले वो सघन नीम और नहीं मिली वो छाँव रे
गाँव ढूँढने ……………………………………………!!५
विद्यालय के वातायन से , खूब निहारे हमने जीवन,
कहाँ खो गए मधुर स्वप्न वो कहाँ आज का ये सूनापन !
सूनेपन की ये अभिलाषा मौन निमंत्रण है खुद मन की
समझ ना पाए रही मौन, जो प्रीत सुनहरी वो बचपन की !!
ह्रदय हीन पाषाण वनों में मिला नहीं आराम रे
गाँव ढूंढने …………………………………….!!६!!