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4 Apr 2017 · 1 min read

मेरा गुमान

छिन गया वो इख़्तियार मुझसे जिसपे कभी हुआ करता था गुमान,
गवारा न था मुझे तुझसे दूर रहना पलक झुकने से उठने तक भी,
मगर आज चुराते क्यों हो नजरें मुझसे ऐसे जैसे मैं हूं कोई अंजान,
बस इतनी सी इक्तला दे दो मुझे की तुम मुस्कुराते हो अब भी क्या,
क्योंकि जुदा होते ही तुमसे मेरी तो नींदों के साथ ही चली गई है मुस्कान,

Language: Hindi
367 Views
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