मेरा गांव बदल रहा है
मेरा गांव अब बदल रहा है
थोड़ा-थोड़ा सा शहर हो रहा है
काका ,मामा, फूफा -फूफी
अंकल-आंटी हो रहे हैं
गुड़ के ढेलियों की जगह
कुरकुरे-मैग्गी ले रहे हैं
बच्चे कंचे ,गिल्ली- डंडा छोड़कर
कार्टून देख रहे हैं
मेरे छोटे से गांव वालों का बड़ा सा दिल
सिकुड़ रहा है
मेरा गांव अब बदल रहा है
मेरे गांव में अब
कुँए के मुहाने पर
रस्सी खींचती अब कोई काकी नजर नही आती
आँगन में अब
गोबर की खुशबू नजर नहीं आती
दाल के संग बथुए का साग नही दिखाई देता
स्टील के गमलो से मकई का रोटी कहाँ बन पाता
दिल से जुड़ने वाले हाथ
खेतो की मेड़ तोड़ रहे हैं
जो दरवाजे रात में भी खुले रहते थे
आज दिन में हीं सांकल चढ़ा बैठे है
मेरा गांव अब सचमुच बदल रहा है
थोड़ा-थोड़ा सा शहर हो रहा है—-अभिषेक राजहंस