मेरा गाँव
चलो ले चलूँ तुम्हें हसीन वादियों में,
इस आपाधापी से दूर सुदूर पहाडो में,
हरे-भरे पेडो से आच्छादित ये वन,
रंग-बिरंगी फूलों से लदी ये डालियां,
नित कलोल करते ये पंछी,
अपने आगोश में बुलाती फूलों की घाटियां.
चलो ले चलूँ खूबसूरत नजारों में,
सुकून हो जहाँ सुदूर पहाडो में.
बर्फ से ढकी ये पर्वत की चोटियां,
जैसे कुदरत ने मखमली चादर तानी होझर-झर झरते झरने,अविरल बहती नदियां,
कहती हैं पेड़ो का आलिंगन करती ये बेलें,
हम साथ रहेंगे सदा.चाहे बीते सदियां,
पनघट की आवाज,वो बचपन के मेले,
बाहें फैलाये बुला रहे हों अपने जहाँ,
शहर की चकाचौंध से दूर पहाडो में,
जीवनदायिनी औषधियों की घनी झाडियां,
सुर्ख फूलों से लदे बुरांश के वृक्ष,
देवदार के उंचे पेडो के घने जंगल,
घास काट कर घर को लौटती नारियां,
धरती में स्वर्ग सा है मेरा गाँव,
मेरा बचपन,मेरी जडे अब भी हैं वहाँ,
इस कर्कशता से दूर दिलकश नजारों में,
आओ ले चलूँ तुम्हें सुदूर पहाडो मैं.