मेरा ख्याल तेरी छत पे बिखरने वाला है….
मुझे भुला के कहाँ तू भी बचने वाला है,
मेरा ख़याल तेरी छत पे बरसने वाला है.
फिजां में रंग ए मुहब्बत बिखरने वाला है.
सुना है आदमी इंसान बनने वाला है.
मैं सोचता हूँ कि लिखता रहूँ ग़ज़ल तुझपे,
मेरी किताब में कोई सिसकने वाला है.
नज़र मिला के उसे बात तुम नहीं करना,
वो खंज़रों सा दिलों में उतरने वाला है.
सही कहा था ये कक्का ने डांटकर मुझको,
शहर में जा के ये लड़का बिगड़ने वाला है.
रजाई एक ही थी घर में कि मेहमाँ आया,
बुझी सी रात में फिर वो ठिठुरने वाला है.
सुबह हुई है यहाँ गाँव गाँव हर घर में,
दही मथा है अभी घी निकलने वाला है.
बनी मिसाइल राकेट भी बने लेकिन,
कभी गरीब का दिन भी बदलने वाला है.
बड़े डरे से हैं कल से यहाँ के रहवासी,
सुना इधर कोई रसता निकलने वाला है.
कभी मिले न खबर रोटियां उगाने में,
किसान फिर कोई फांसी लटकने वाला है.
मुझे पता है मुहब्बत मुझी से करता है ,
कि देखना अभी कैसे मुकरने वाला है.
…….सुदेश कुमार मेहर