मेरा आत्मसम्मान
मेरा आत्मसम्मान
मेरा आत्मसम्मान रात ऐसे मध्यम सी ढल रही थी । अपनी बाल्कनी से नीचे झाँकते हुअे, रितीमा विहार का इंतजार कर रही थी ।धीमी बारिश भी आ रही थी ,बारिश की बूँदों की ठंडक उसे अकेले बिलकुल नहीं भा रही थी। आज इतनी देर क्यों हुई होगी ?,सोचकर एक बार और मोबाइल जोड़ा ,सामने से आउट ऑफ रेंज देखकर हैरान रह गयी ,ऐसा भी क्या काम आ गया होगा।शादी के नौ साल बाद भी कभी शक करने का मौका नहीं दिया था विहार ने।ऑफिस फोन लगाया तो रींग बज रही रही थी ।उतने में डोरबेल बजी और रितिमा ने जल्दी से दरवाजा खोला ।सामने थका हुआ विहार,आधी टाइ खींची हुई और बैग तो बस गिरने वाला था ।’अरे ,ये क्या ,ऐसे क्यों खड़े हो ?आज ट्राफिक कुछ ज्यादा था क्या ?’
‘सवाल ही पूछती रहोगी या पानी भी पिलाओगी ?’एकदम से झुंजलाया हुआ ,अपने बाल झनजझोडता,आँखे बंघ करके सोफे पर बैठ गया और रीतिमा चुप हो गयी । पानी देकर सीधा माइक्रोवेव में डिनर गरम करने रखा ,पिछले कई दिनों से ऐसे ही बिगड़ा हुआ मुड़ लेकर घूमता था। रितिमा को ऑफिस की परेशानियों के बारे मे कहकर बात टाल देता था ,अब रीतिमा करे भी तो कया ?मायका उसका दूर के छोटे से शहर में था ।यहाँ थोड़े से पड़ौशी और जितने भी फ्रेंड थेसब विहार के ।कॉलेज की एक फ्रेंड की बहन थी यहाँ बोम्बे में ,, जिसका नंबर देकर रखा था ,लेकिन ऐसे किसी अंजान से अपने मन की घुटन कैसे डिस्कस करे रितीमा। कितने डॉक्टर को दिखा चुकी थी और सब नोर्मल रिपोर्ट थे ।अब विहार का ऐसे बिहेव करना उसको बहोत खल रहा था.सोचती रहती …’बस यही एक स्त्रीके अस्तित्व का प्रमाण है, की वो माँ बन गई तो देवी ,वर्ना एक कोने में पड़ा हुआ फ़ालतू सामान? ‘अपने पढ़े- लिखे पति की सोच पर उसे आश्चर्य होता जब वो किसी ज्योतिष या पंडित के पास से कुछ विधियाँ जानकर आता और रितिमा को भी शामिल करता। खाना खाकर तुरंत एक बुक ली और बैडरूम में चला गया ।रीतिमा मिल्कशेक लेकर गयी और टीवी.ओन करके बैठी.ऐसे ही चुप बैठे रहे दोनों.।थोड़ी देर बाद लाइट ऑफ़ होने पर रितिमा ने पास जाकर हाथपर हाथ रखा लेकिन वो प्यारवाले स्पर्श की बजाय कुछ ठंडा सा प्रतिभाव महसूस हुआ ।वापस घूमकर तकिए पर दो -चार आंसू गिराते नींद लग गयी ।सुब्ह के नास्ते पर , विहारफोन पर बाते करता रहा और उदास आंखो से खिड़की के बाहर झाँकता रहा, जैसे रीतीमा को और खालीपन महसूस कराना चाहता हो ,और थोड़ी देर में तैयार होकर निकल लिया।घरका सब काम निपटाकर थोड़ा शॉपिंग वगेरा के लिए बहार निकली ।टैक्सी में जाते उसकी नज़र भिड में से दूर गुजरती विहार की कार पर पड़ी साथ में कोई और भी था ,इस समय ?यहाँ ?? लेकिन इतना दूर था की बराबर देख नहीं पायी ।एकदम व्यग्र मन से शॉपिंग ख़त्म की और निकल रहीथी के सामने से आती हुई मिसिस अग्रवाल मिल गयी जो उसकी वुमन किटी क्लब की मेंबर थी ,ऐसे ही बात करते हुए अपने भतीजे के फर्टिलिटी क्लिनिक के बारे मे बतायाजिसनेअमरीका में स्पेशलाइझेशन करके काफी केस सॉल्व किये थे, उसका एड्रेस लिया ।मन में एक बुझे हुए ढेर पर जैसे आशाभरी कोई चिंगारी अभी बाकी हो ,थोड़ा प्रफुल्लित महसूस करती हुई घर पहुँची और फोन करके अपोइंन्टमेंट भी ले ली ।
ऑफिस से आज भी देर से आना हुआ विहार का लेकिन, कुछ भीपूछे बगैर अपने काम में व्यस्त रही ,थोडी देर बाद विहार बातें करने की कोशिश करता रहा और अपने किसी दोस्त की बहेन ,जो यहाँ गवर्नमेंट ऑफिस में प्रमोट होकर आई थीउसको खाने पर बुलाने का प्रोग्राम बना रहा था
‘ठीक हे सन्डे को रख लेते हे ” ।
‘अभीप्सा पुणे में रहती थी और अब यहाँ ६- ७ महीने से बम्बई में रहती हे उसके हसबैंड की एक्सीडेंट में डेथ हो गया था, ६ साल की एक बच्ची भी हे ..उसका भाई मतलब मेरा फ्रेंड देल्ही में हे वो शादी करके पुणे आई थी ‘
‘ओके ठीक ह ‘करके ज्यादा बात किये बगैर बेडरूम में चली गयी ।बारिश के दिनों की ठंडक महसूस करती हुई बालकनी में खड़ी रही ,इतने सुहावने मौसम में भी रीतीमा के मन के आकाश मे शंका के बादल उमड़ने लगे ।अचानक दिल में कुछ टूटता हुआ महसूस होने लगा ।फिर थोड़ा स्वस्थ हुई और कल की डॉक्टर की अपोइंन्टमेंट के पेपर वगैरह हेंडबेग में रख लिए ।अभी वो विहार को कुछ बताना नहीं चाहती थी ।सुब्हे जल्दी तैयार होकर विहार के जाते ही डॉक्टर विभावन अग्रवालके क्लीनिक पहुँच गयी ।सब चेक करते हुए डोक्टर ने बताया की ,
‘टाइम लगेगा लेकिन नयी तकनीक यूज़ करके फाइब्रोड डेवलपमेंट रोका जा सकता हे ‘मतलब वो समझ गयी की ट्रीटमेंट उसका खुद का ज़रूरी हे लेकिन वो हिम्मत हारना नहीं चाहती थी।सन्डे के दिन अभीप्सा अपनी बच्ची को लेकर आई और सबने मिलकर डिनर एन्जॉय किया ।अच्छे नेचर की और पढ़ी- लिखी लड़की थी अभीप्सा ।विहार के साथ गवर्मेंट की नयी पॉलिसी वगैरह के बारे में बातें करते रहे, जो विहार के बिझनेस में काफी काम आ सकती थी ।रीतीमा समज गयी के ऑफिस के किसी काम के लिए मिले होंगे। डॉक्टर की सब इंस्ट्रक्सन को फॉलो करते हुए माइनोर ओपरेशन और दवाई बराबर करती रही फिर भी समय तो पानी की तरह बहता जा रहा था।पार्टी वगैरह में भी अभीप्सा का काफी मिलना रहता था, अब थोड़ा मुड़ भी ठीक रहने लगा था विहार का ।रितीमा भी धीरज से अपने पति को संभालने की कोशिश में लगी रही ।विकेंड मे ऑफिस के स्टाफ वगैरह के साथ खंडाला पार्टी में भी साथ अभीप्सा और उसकी बेटी को साथ लेकर गए ..रितीमा कोये बात काफी खल रही थी । विहार का ज्यादातर दूसरे शहर में काम से जाना भी बढ़ गया था, रात को देर से आने के बाद विहार ने बात छेड़ी
‘क्यों न हम अभीप्सा की बेटी को गोद ले ले?’।
‘आप का तो कुछ ज्यादा ही लगाव हो गया हे अभीप्सा से’।
‘हां ,, पुरानी पहचान हे ,कॉलेज के दिनों से वो यहाँ अपने भाई से मिलने आती थी और हम सब मेरे घरपर फ्रेंड्स पार्टी करते थे ‘
।’हां ,लेकिन किसी बाहर के लोगों की वजह से अपनों से ऐसे व्यवहार करना ….’
बोलते हुए रितीमा का गला भर आया और घूमकर दूसरी और देखने लगी ।विहार ने पास जाकर मनाने की कोशिश की और भारी मन से रीतिमा उसके बेजान से प्यार की हरकतों को सरेंडर होती हुई सो गई ।कितनी बार वो अभीप्सा के घरसे खाना खाके आता और कहे देता आज कुछ प्रोजेक्ट के बारे में डिस्कस करना था ।अभीप्सा भी जब मिलती बात करने का टालकर थोड़ा हाय हेलो कर लेती ,रीतिमा समझ गयी थी की दोनों अब आँखे चुराने लगे थे ।और …एक रातकाफी बातें डिसकस होने के बाद विहार ने कन्फेस कर लिया के वो अभीप्सा से प्यार करता था लेकिन ,उसकी शादी कहीं और हो गयी और जब वापस मीले तो अपने दुःख एक दूसरे से बांटते हुए प्यार की धारा ओ में बहे गए थे और उनका अब एक दूसरे से दूर रहना नामुमकिन था ।एक गहरी सांस लेते हुए रितिमा ने कहा
‘में आपको बच्चा नहीं दे पायी, उसकी वजह से आप मुझसे इतना दूर हो जाएंगे ये सोचा नहीं था ‘।
‘अैसी सब बातें जोड़कर क्योंअपने आपको दुखी कर रही हो? एक ही तो जिन्दगी मिली हे और में अभीप्सा से अपना बच्चा चाहता हुँ ‘।
यह सुनकर गुस्से से आगबबूला हो उठी,
‘आप मुझे ऐसी बँटी हुई ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते’
और धड़ाम से दरवाज़ा बंध करके दूसरे कमरे में चली गयी.काफी देर तक बेडपर पड़ी हुई रोती रही।और सोचने लगी ,जब विहार ही मुझसे दूर हो गए हे तो किसी और का क्या दोष निकाले ।काफी दिन एकदूसरे से बात किये बगैर गुज़र गए ।रितीमा अपने मायके फोन करके बात करती ,लेकिन किसी को कुछ बताया नहीं।विहार कभी कभी रातको उसके पास आकर और समझाने की कोशिश करता और वो उसे फिर पाने की आस में खिंचती चली जाती।
‘में तुम्हें कभी कोई तकलीफ नहीं दूँगा ‘कहेकर रितीमा की आंखो में देखने लगा ,मध्यम सी रोशनी में उसकी आँखों के चमकते आंसू को होठों से चूमकर और नज़दीक आता रहा ।उसने रीतिमा की खामोशी को उसकी हां ही समझी थी ।अभीप्सा- ५ मंथ से प्रेग्नेंट होने की बात सुनी जब विहार से तो एकदम गुस्से से सामने देखती रही और फिर अपने रुम में चली गयी ।बहते हुए आंसू के साथ अपने मन को शांत करने की कोशिश करती रही ।आज खाने को भी मन नहीं था उसका, सिर्फ डॉक्टर की दी हुई दवाइयां लेकर पड़ी रही ।उसने सोच लिया में अब यहाँ से कही चली जाउंगी और एक चिट्ठी लिखकर दूसरे ही दिन प्लेन से अपने मायके चली गयी ।रास्ते में कितनी बार विहार का फोन आया लेकिन कोई जवाब नहीं दिया उसने ।वहाँ जाकर ऐसे नार्मल सबसे मिलती रही ।घरपर भी विहार के फोन आते लेकिन सबके सामने जनरल सी बातें कर लेती ,बहूत समय के बाद रहने आई थी तो सब खुश हुए ,कोई रीझन देने की ज़रुरत नहीं थी । दो महीने इधर उधर घूम लिया ।मम्मी – पापाके साथ एक शाेर्ट टूर कर लिया और अचानक से तबियत बिगड़ने पर नज़दीक के डॉक्टर के यहाँ गयी उन्होंने कुछ टेस्ट करवाएँ और रिपोर्ट देखकर रीतिमा एक पल के लिए खुशी के मारे गिरने ही वाली थी की डॉक्टर ने सम्भाल लिया ।वो मां बनने वाली थी । उसने डॉक्टर से किसी को बताने के लिए मना कर दी ।मौसम में फिर नए आनेवाली बारिश के आशार नजर आ रहे थे ।अपनी कार की खिड़की खोलकर नई बारिश की बूंदों से अपने चहेरे की उदासी को पोंछ लिया और तय कर लिया की में उस घर में और विहार के पास कभी नहीं जाउंगी ।कार के रेडीयो पर प्यारा सा गीत बज रहा था।
‘कभी जो बादल बरसे मैं देखूँ तुझे आंखे भरके तू लगे मुजे पहेली बारीस की दूआ….. ”
अपने नये आनेवाले बच्चे के सपने बुनती हूइँ घर की ओर जाने लगी।आज नए बारिश की मौसम में उगती हुई कूम्पलों से जैसे धरती में हलचल पड़ा करती हे ऐसी लहर सी तन में महसूस करने लगी।फोन करके उसने विहार कोअपना डिवोर्स लेने का निर्यण बताया और घरपर भी सब बातें बता दी।उसके जीवन के नए संघर्ष में सब साथ थे।
‘कुछ भी हो जाय में अपने आने वाले नए जीवन के साथ ही रहूंगी ,किसी से अपनी जिंदगी बांटना नहीं चाहती,’।
– मनीषा जोबन देसाई