मेघ
मेघ जो तुम घिर आए हो , किसका संदेशा लाए हो ..
यूं उमड़-घुमड़ कर तुम
आसमान पर छाए हो
किसका संदेशा लाए हो…
तुम्हारे आने से पहले जो दहक रही थी हवा
क्या तुम्हारा क्रोध था
कौन टकराया था तुमसे मार्ग में
किस पर तुम्हारा रोष था
अनगिनत संभावनाएं हैं बताओ,
किस डगर से आए हो ..
मेघ !जो तुम घिर आए हो , किसका संदेशा लाए हो …
क्यों गरज रहे हो इतना ,
क्या उद्देश्य तुम्हारा है
क्या है वह संदेशा ,
क्यों ऐसा हाल तुम्हारा है
क्या तुम्हें मेरे ‘देव’ ने है भेजा ,
क्यों इतना अकुलाए हो..
सच सच बतलाओ क्या ,
मेरे लिए तुम आए हो ..
मेघ !जो तुम घिर आए हो , किसका संदेशा लाए हो
इतना बोझ है संदेशे में ,
जो तुम ठहर गए हो
इतनी शीतल हवा बह रही ,
फिर भी गहर बने हो
कुछ तो तुम बतलाओ ,
क्या उनको मुझसे नाराजी है
मुझको भय लगता है जब शिकन
तुम्हारे माथे पर आती है
है कैसी विवशता जो तुम
अब तक बतला ना पाए हो
अब बतलाओ , क्या संदेशा लाए हो ..
मेद्य ! जो तुम घिर आए हो , किसका संदेशा लाए हो …
क्या तुम अब तक इस दुविधा में हो
जब तुम संदेशा बतलाओगे
मुझ को खुद में टूटा हुआ तुम
कैसे सहन कर पाओगे
विश्वास करो ‘ निहारिका’
हर कठिनाई सह लेती है
टूट भी जाए अगर कभी तो
सहज स्वयं को कर लेती है
क्या वे मेरे उपक्रोष्टा थे
क्यों आवेश में आए हो ..
मेघ ! तुम घिर आए हो , .किसका संदेशा लाए हो ..
ऐसा है अगर बरस जाओ मुझ पर
अपना मन हल्का कर लो
जो भी है , जैसा भी है
उनका संदेशा मुझको दे दो
यूं हल्की फुहारों में , समझ नहीं मैं पाऊंगी
बरसो इतना दर्द है,जितना मैं सब सह जाऊंगी
मेरा और तुम्हारा दर्द
अब तो एक ही है
मेरे और तुम्हारे प्रेमी
अलग नहीं एक ही हैं
उनका पूरा संदेश सुनाओ
वह सब जो लेकर आए हो ..
मेद्य जो तुम घिर आए हो ,
किसका संदेशा लाए हो …
यों उमड़-घुमड़ कर तुम,आसमान पर छाए हो ..
किसका संदेशा लाए हो …..
निहारिका सिंह