मेघ
मेघ
बरस जाया करो
बिना मनुहार
कभी कभी
ऐसे ही
तुम्हारे बरसने से
प्रकृति ही नहीं
सूखा मन भी
हरिया जाता है
मेघ
क्या करे
वो तो चाहता है
सूखे मन को
तर कर दे
हरिया दे
पर
वो भी बेबस है
हवा पर उसकी निर्भरता
उसको प्रिय के घर
बरसने का
मौका नहीं दे रही
इधर उधर
बहा ले जा रही है
वो भी ढूंढ रहा है
उस ठिकाने को
बरसने के लिए
जहाँ पपीही उसका
इंतज़ार कर रही है