” मेघ “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
===============
“कभी तू बनता
कोमल
पंकज ,
मंदिर बनता
और भब्य महल !
कभी लगता
है तू
बन गया
विशाल
स्वर्ग का
स्वेत शिखर !
नभ में
तू विचर रहा
अबिरल
हे मेघ ! बता
तू चला किधर ?”………………
==============
डॉ लक्ष्मण झा , दुमका ,झारखण्ड