*”मेघ आये बन ठन के”*
“मेघ आये बन ठन के”
धरा ने ओढ़ ली चुनरिया दुल्हन बनके ,
व्योम दूल्हा बने हैं, देखो सेहरा पहन के।
उमड़ घुमड़ कर बदरा छाये ,
चमक दामिनी चमकत जाये ,
बादल गरजे ढोल नगाड़े बाजे ,
पवन चले पुरवईया बारात लेके।
मेघ आये हैं देखो बन ठन के ..! !
दादुर पपीहा कोयल कुहके ,
सप्तसुर राग मंगल गीत सुनाये ,
मोरनी पुकारे तड़प तड़प के ,
वन में नाचे मोर पँख फैला के।
मेघ आये हैं देखो बन ठन के …! !
ताल तलैया छलछल छलके ,
कलकल नदियां वेद मंत्र सुनाये,
धरती अंबर का मिलन हो रहा ,
नववधू बन धरा यूँ शरमाये ,
रस्में निभाई पर्वतों से मिल के ।
मेघ आये हैं देखो बन ठन के …! !
सूखी धरा की प्यास बुझी है ,
तरु पल्लव भी झूमे नाचे गाये ,
सौंधी मिट्टी की खुशबू महके ,
नव अंकुरित फूटे ज्यों अमृत बरसाये ,
बरखा का स्वागत आमंत्रण पत्र लेके।
मेघ आये हैं देखो बन ठन के …! !
बूंदों की थाप रूनझुन पायल ,
भींगती धरा का भींगा आँचल ,
अमर प्रेम धरती अंबर का ,
सुरभित उपवन सघन महके ,
कलियां खिलती श्रृंगार कर के।
मेघ आये हैं देखो बन ठन के ..! !
शशिकला व्यास✍
स्वरचित मौलिक रचना