में ही हूं, मैं ही कहानी
में ही हूं, मैं ही कहानी
मैं अपनी कहानी का वह किरदार हूं,देखकर नहीं पहचान पाओगे,क्योंकि छुपाने में बेशुमार हूं।
धारयुक्त, खुद मूढा हुआ तलवार हूं,जीवन की लड़ाई में खड़ा हूं।।
कहानी में तो हथियार लिया था,पर मैं खुद ही हथियार हूं,
रंगमंच का कलाकार हूं,अपने जीवन का संग्राम हूं।।
सब कहानी का सिर्फ नाम है,जिसको पहचानने की बस में नहीं,
खून से लटपट, घायल प्यार हूं।सामने देखो, तेरा वही यार हूं।।
मैं खुद कहानियों का भरमार हूं,और कहानी का भी किरदार हूं।
दरबारी भी हूं, खुद दरबार भी हूं,बिन जनता का सरकार हूं।।
जिसका पसंद नहीं मालूम तुम्हें,तुम्हारा वह एक मामूली सा यार हूं।मेरी गहराई को नहीं समझ पाओगे,अनेक में एक, एक में हजार हूं।।