– में अब अकेला जीना चाहता हु –
– में अब अकेला जीना चाहता हु –
में खुद में खो जाना चाहता हु,
बाहर से हंसना अंदर से रोना चाहता हु,
अपनी वेदनाओ को सुखों की स्याही से कागज पर उकेरना चाहता हु,
दुखो के पहाड़ को में तोड़ना चाहता हु,
सुखों के सागर में डुबकी लगाना चाहता हु,
अपनो जो है वास्तव में पराए उनसे में रिश्ता तोड़ना चाहता हु,
पराए जिन्होंने अपनत्व का एहसास कराया,
उनको में अपनाना चाहता हु,
अपने ही देते है दुःख में साथ यह जो भ्रम था मेरे मन को,
इस भ्रम को में अब तोड़ना चाहता हु,
में अब अकेला जीना चाहता हु,
✍️ भरत गहलोत
जालोर राजस्थान
संपर्क-7742016184