मृत्यु
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पता नहीं मृत्यु को ‘पूरा’ है या अधूरा।
खुद को याद नहीं रखता मृत्यु।
मन में कोई अवसाद नहीं रखता मृत्यु।
जीवन पूरा हो जाता है यहाँ,
चाहे जितना अधूरा हो जहां।
परेशानियों का अंत।
तुरंत।
मरने से क्या मरता है!
जटिल और उलझा।
मरने से आजतक,
क्या है सुलझा।
जीवित रहने को
कितना! है बड़ा संघर्ष।
विद्वता और मूर्खता
किसीको नहीं बख़्शता
मृत्यु का अनचाहा स्पर्श।
मृत्यु सत्य है
निर्माण के विध्वंस सा।
निर्माण का विध्वंस
होता अवश्य है।
ध्वंस का निर्माण होता नहीं
दृष्टिगोचर।
मृत्यु को दुश्मन मानता है जीवन।
मृत्यु को बदशक्ल मानता है तन।
मृत्यु को अशिष्ट मानता है मन।
किन्तु,मृत्यु जानता है नियति।
सृष्टि के समय रचे गए सारे विधि।
मृत्यु कदाचित सभ्य समूहों का शोक है।
आपसी प्रसन्नता-प्राप्त जातियों का मोह।
असमंजस नहीं पालता,पाला नहीं बदलता।
यह मृत्यु है जो खुद को नहीं टालता।
जीवित रहता है आसमान के मिटने तक।
छाती ताने बियाबान के टिकने तक।
मृत्यु की परिभाषा हमारी तो है लचर।
परिणाम से स्खलित हुए तो मृत्युवत्।
जो मानता है मृत्यु, वह है होना नष्ट।
मृत्यु से जीवन को रहता सर्वदा कष्ट।
मृत्यु,जीव-तत्व का है अस्तित्व परिवर्तन।
पुनर्जन्म के लिए नहीं आत्मविसर्जन।
मानें आप पुनर्जन्म होता है अवश्य।
मृत्यु में बिखरे पदार्थ का, है तथ्य।
मस्तिष्क में स्थित मन का तो नहीं।
अथवा संस्मरण लिखे,उकेरे जाते नहीं।
कोई जानता नहीं, मृत्यु जानता है।
मर जाने का सत्य कारण क्या है।
पाप या पुण्य,देह का,कर्म का,मन का।
या किसी को दिये वचन का।
हम मरेंगे,हम जानते हैं।
मृत्यु को सत्य ही मानते हैं।
हर समय मृत्यु को डराते हैं।
अमृत सृजित कर लेंगे।
तुम्हारे यम को पकड़ लेंगे।
आयु अनंत कर लेंगे।
ठीक है तब तक मरते हैं।
तुम्हारा कहा करते हैं।
अमरता असंभव नहीं।
होगा मानो पराभव नहीं।
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