— मृत्यु जबकि अटल है —
दुनिआ खत्म नहीं हो रहा है, खत्म की जा रही है, कभी किसी के द्वारा, कभी खुद से , कोई किसी को एक्सीडेंट से मार रहा है, कोई किसी को बलात्कार कर के मार रहा है, कोई किसी को कत्ल कर के मार रहा है, कोई जमीन के विवाद में एक दूसरे के खून का प्यासा हो रहा है, कोई अपनी हवस के कारण खुद पैदा कर रहा है, किसी की बीवी पर या किसी औरत का आदमी के चक्कर में कत्ल हो रहा है, कोई अवसाद में खुद को फांसी पर लटका रहा है, कोई आने वाले वक्त को लेकर इतना चिंतित है कि वो खुद ही बिमारी की वजह से मर रहा है , ले देकर यही सामने आ रहा है, कि कोई किसी को खुश देखकर खुश नहीं है, जलन की भावना मन ही मन में रखते हैं, बस जुबान पर राम का नाम रखते हैं , मिठास जो लोगों की जुबान पर देखने को मिलती है, यही वो चाकू है, यही वो जहर है, यही वो हथियार है, जिस से वो लोग ज्यादा शिकार हो रहे है, जो जल्द से दुसरे पर विश्वाश कर लेते है, उस के बाद उनका अंत कर दिआ जाता है, न जाने क्यूँ लोग एक दुसरे की तरक्की को देखकर इतनी ईर्ष्या करते है, जबकि वो तुम से कुछ मांग नहीं रहा है, तुम्हारा लेकर खा नहीं रहा है, अपना जो भी करता है मेहनत के बल बूते से करता है, पता नहीं क्यूँ , किस लिए फिर लोग ऐसी द्वेष की भावना को अपने मन में पैदा करके, उस का बुरा चाहते है, बुरे से याद आया की लोग अपने सुख की खातिर आपका बुरा करने से कभी नहीं चूकते , जादू, टोटके, हकीम , तांत्रिक के यहाँ जा जाकर न जाने कैसे कैसे हथकंडे तैयार करवा के आपके लिए मौत का जाल बनवा लेते है, सुखमय कोई जीवन न जिए ऐसी ऐसी भावना लेकर आपके मन के भेद ले लेंगे, फिर आपका बुरा करने में देर नहीं लगाते !
सुना था कि रामराज भी हमारे देश में सतयुग में था, पर कहाँ था ? उस में भी तो जलन की भावना, द्वेष, कुंठा, जैसे कर्मकांड हुआ करते थे, आज कलियुग में उस की गति काफी ज्यादा बढ़ गयी है, सच बात तो यही है, कि लोगों के मन के उप्पर अंकुश नहीं लग पाया है, मन हमेशां चंचल बना रहा है, बुरा ही बुरा सोचता आ रहा है, अच्छा कभी करता ही नहीं, कितने सत्संग सुन लो, कितने पूजा पाठ कर लो, कितने धर्मार्थ के काम कर लो, जब तक यह चंचलता बरकरार रहेगी, तब तक सच्चा रामराज कभी नहीं आ सकता ! कहने को तो बहुत से संत इस धरती पर आये, पर शायद उन कुछ संतों के बीच भी गलत भावनाओं ने घर किया, जो सच्चे गुरु थे, उनको दुनिआ के किसी भी तरह के आडंबरव से कुछ लेना देना नहीं था, वो केवल अपनी भक्ति में लीं रह कर संसार की यात्रा पूरी कर गए , आज ही देख लो कितने संत है, कोई राजनीति में लिप्त है, कोई भोग विलास में लिप्त है, कोई इतना बड़ा लग्जरियस बना हुआ है, कि उस को आध्यात्म दिखाई ही नहीं देता !
सब जानते है, कि इस संसार पर सदा किसी का अधिकार नहीं रहा कि वो इस का मालिक बन जाए, फिर भी पता नहीं क्यूँ अपना अधिपत्य जमाना चाहता है, यह इंसान !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ