मृत्युभोज
मृत्युभोज
मंगतू ने गरीबी की मार सहते हुए जैसे तैसे मजदूरी करके अपने इकलौते बेटे को पढ़ा लिखाकर कामयाब कर दिया।अच्छी नौकरी मिल गई। नौकरी के बाद बेटे की शादी कर दी गई।बेटा अपनी बीबी को शहर में साथ ले जाता है।मंगतू का वहाँ जाने का मन तो नहीं कर रहा था।लेकिन अकेला क्या करता।वह भी वहीं चला गया।मंगतू वहाँ भी गाँव की तरह रहता था।मंगतू की पुत्रवधू को यह फूटी आँख न सुहाता था।नौबत यहाँ तक आ गई कि मंगतू को वापस गाँव आना पड़ा।
गाँव आने के बाद मंगतू बीमार पड़ गया।कुछ दिन बाद वह भगवान को प्यारा हो गया।जब अपनी नौकरी की साहूकारी दिखाते हुए उन्होंने मृत्युभोज पर दो लाख रुपये खर्च कर दिये।क्योंकि गाँव, समाज में इज़्ज़त बनानी थी।मंगतू का बेटा ऑफिसर है। इतना बड़ा दान पुण्य किया है। यदि मृत्युभोज पर ये झूठा दिखावा न करके मंगतू के जीते जी उसकी सेवा की जाती।उसको अच्छा खाना ,बीमारी के समय दवा दारू व सम्भाल की जाती तो कितना अच्छा होता।
अशोक कुमार ढोरिया
मुबारिकपुर ((झज्झर)
हरियाणा