मृत्युभोज से छुटकारे का उत्सव
उतर बिहार के विभिन्न इलाकों मे मृत्युभोज इतना बड़ा उत्सव है की कोई इससे पिछा नहीं छुड़ा पाता? अमीर हो या ग़रीब सभी के लिए मृत्युभोज करना समाजिक रूप से अनिवार्य नियम हैं. लोग भी इतने दकियानूस की मृत्युभोज ना करने की हिमाक़त भी नहीं कर सकता? भले ही खूब पैसे खर्च मे उड़ जाए या फिर पुस्तैनी जमीन ही क्यूं न बिक जाए या भले कोई कर्ज़ में ही क्यूँ ना डूब जाए? यहां पर तो समाज के लोग भी मृत्युभोज के उत्सव मे जमकर अपनी धाक जमाते फिरते. भोज खाने की लालसा में तो यहाँ के लोग कर्मकाणडी डंक से लोगों को एसे डँसता है की मानो गरीब रे लिए तो ये मृत्युभोज किसी काल कोठरी से कम नहीं?
बिहार के रामपुर गांव का रमेश अपनी उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली चला गया था. पढ़ने मे होशियार तो था ही साथ ही वह वैज्ञानिक विचारों को मानता था और धार्मिक आंडबरो के सख़्त खिलाफ़ भी था. रमेश पढाई के साथ साथ प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी भी कर रहा था. हालांकि शुरूआत में उसे असफलता ही हाथ लगी, लेकिन फिर भी वह पूरे मेहनत से इम्तिहान देता रहा. आखिरकार उसका चयन सचिवालय सहायक के रूप मे हुआ और उसने नौकरी भी करनी शुरू कर दी. अच्छे खासे से उसकी ज़िदगी कट रही थी. उसके घर वाले भी बेहद खुश थे और उसे शादी के लिए दवाब भी बना रहे थे. रमेश के पिता जी बूढ़े हो चुके थे यही सब सोचकर उसने भी शादी के लिए हामी भर दिया.
रमेश के पिता ने किसी रिशतेदार के गांव मे ही उसके शादी के लिए रिशता तय तमन्ना कर चुके थे. बस शुभ मुहुर्थ निकलवाकर शादी के दिन तय करना था और रिशतेदरों को निमंत्रण भिजवाना रह गया था. घर मे काफि चहल पहल था. ईधर रमेश को भी ख़बर कर दी गई थी और उसे जल्दी से गांव आने को कहा गया. वह भी गांव आने के लिए ट्रेन की टीकट आनलाइन बुक कर लिया था. फिर तय समयानुसार रमेश अपने गांव के लिए चल परा था, ईधर घर के लोग शादी के उत्सव की तैयारी मे लगे हुए थे. वह रास्ते मे ही था की अगले दिन उसे सूचना मिली की उसके पिता जी का हृदयघात से अचानक मृत्यु हो गया. ये ख़बर मिलते ही रमेश सन्न रह गया और दहारे मारकर जोर से रोने लगा.
पिता के मृत्यु के बाद रमेश अपने गांव रामपुर पहुँचा. उसके रिशतेदार भी और गांव के लोग बाग भी जमा हो चुके थे. रमेश दहारे मारकर रोए जा रहा था, उसकी माँ और बहन का भी रोकर बुरा हाल था. गांव वालों ने सांत्वना देकर समझा बुझाकर आखिर मे दाह संस्कार कर दिया. दाहकर्म के बाद रमेश बिल्कुल उदास रहने लगा. आज उसके पिता का नौ केस था. सभी ने समाजिक नियम के अनुरूप केस कटवाया. अब तेरहवीं के मृत्युभोज की शाम मे बैठक होनी थी.
तेरहवीं के दिन मृत्युभोज के बैठक के लिए गांव के गनमाणय लोग रमेश के दरबाजे पर बैठक के लिए आए. इधर चाय पानी भी हो रहा था और लोग बाग अपनी बात भी रख रहे थे. कोइ कह रहा था तुम्हारी तो सरकारी नौकरी है पूरे पंचायत को लेकर भोज करना होगा. तो कोई पूरे गांव के लोगों को लेकर भी भोज खिलाने का दवाब बना रहा था. जैसे ही रमेश ने कहा की वह मृत्युभोज नहीं करेगा सिर्फ दस एक्किस लोगों को ही खिलाकार श्राद्ध कर्म की औपचारिकता भर करेगा. बस इतना सुनते ही मुपुर्खों की भौंहे तन गई. कई ने तो रमेश को बिरदारी से अलग होने की धमकी तक दे डाली. पर रमेश अपने फैसले से टस से मस नहीं हुआ.
आखिरकार रमेश ने मृत्युभोज की औपचारिकता भर करने के बाद अपने गांव मे लाइब्रेरी बनबाया. ईधर गांव की पंचायत ने रमेश के घर का हुक्का पानी बंद करने का फरमान सुनाया. लेकिन रमेश पर इसका कुछ खास प्रभाव नहीं परा. वह लाइब्रेरी की जिम्मेदारी अपनी बहन सुनैना और गांव के ही करीबि मित्र सुमित को सौंपकर दिल्ली लौट चुका था. शुरूआत मे तो लाइब्रेरी संचालन मे काफी कठिनाइयां हुई लेकिन रमेश सभी को फोन के माध्यम से गाइड कर रहा था. गांव के दकियानूस लोग लाइब्रेरी नहीं चलने देने पर आमदा थे लेकिन फिर भी सुमित और सुनैना ने हिम्मत से काम लिया और लाइब्रेरी को संचालित किए रहा.
धीरे धीरे पड़ोस के गांव के बच्चे भी लाइब्रेरी मे पढ़ने आने लगे. गांव के कुछ बच्चे भी देखा देखी आने लगे. छात्र वहाँ पढ़ते भी और सुमित एवं सुनैना इन बच्चों का मार्गदर्शन भी करते थे. छात्र परीक्षाओं की तैयारी मे लगे हुए थे. ईधर रमेश की शादी तय हो चुकी थी. अपनी माँ के कहने पर वह अपने गांव पहुँच चुका था. शादी की तैयारी जोर शोर से हो रही थी. आज रमेश बारात लेकर जाकर जाएगा. वह सज धजकर घोड़ी पर बैठा ही था की एक नौजवान सा लड़का आया और सुमित ले बताया की उसका चयन रेलवे मे हो गया. लाइब्रेरी की पढाई और पुस्तक की बहुत मदद मिली. इतना सुनते ही खुशी से रमेश नीचे उतरकर उस नौजवान लड़के एवं सुमित को गले लगाकार बधाईयाँ दी. सुनैना भी ये सुनकर खुशी से फूले नहीं समा रही थी. मानो सभी मिलकर खुशी खुशी आज मृत्युभोज से छुटकारे का उत्सव मना रहें हो.
आखिरकार उन सबको सफलता मिली और मृत्युभोज के अनावशयक खर्च के बदले लाइब्रेरी बनवाकर जो समाज का हित हुआ. मानो उस नौजवान की सफवता और वक्त पर रमेश के सही फैसलें एवं सुमित सुनैना के लाइब्रेरी जिम्मेदारी संभालने की पहल मृत्युभोज से छुटकारे के उत्सव को बयां कर रहा हो. रमेश भी शादी के ल्ए निकल परा, वो नौजवान के साथ बारात चल दिया, ईधर सुनैना भी खुशीयों के गीत गाकर अपने भाई को दुल्हन के घर जाने को विदा किया. बैंड बाजे की धुन और लाइब्रेरी की सार्थकता ने मृत्युभोज से मिले छुटकारे के उत्सव तो आज देखते ही बन रहे थे.
लेखक- डॉ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)