मृगतृष्णा
इस हिरना मन की मज़बूरी
लेकर एक तृष्णा अधूरी!
जंगल-जंगल ढूंढ़ता फिरे
यह तो अपनी कस्तूरी!!
वैसे तो लांघे इसने अब तक
कितने पर्वत-कितनी नदियां!
लेकिन कभी न तय कर पाया
ख़ुद से ख़ुद तक की दूरी!!
Shekhar Chandra Mitra
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