मृगतृष्णा
प्रभुत्वक ताँकमे, रातिक ठिठुरैत बास,
चाँनिक चदरी, खिसकऽ बैस।
सोहारीक टुकड़ीसँ, पेट भरल मटोल,
गाँवक पगडंडी पर, सपना बुनैत चल।
बिसरै जाहु पथ, नेनपनक धारा,
जइमे सपना आ हकीकत, फिसलैत एकठाम।
कुनू बाट पर इयाद, नानीक कहानी,
हवा में गूँजैत, कान में सभ बानि।
महानता के टाट पर, सपनाकेँ बक्सा,
पुरान खिलौना सभ, धूलि मे घुसाँ।
स्वर्णिम भविष्यक, प्रस्तावनाक वायदा,
हकीकत में भेटल, धूल आ धुँध के सिवा।
जयसे पलटलहुँ, राजपथ के परिछ,
महानता के मृगतृष्णा, धोखा के सृजन।
—– श्रीहर्ष —-