मूहूर्त
जीवन के सच में हम मूहूर्त मानते हैं।
हमारी सोच हमें कल पल बताती हैं।
आज आधुनिक युग में मूहूर्त मानते हैं।
सच और झूठ फरेब के साथ हम रहते हैं।
ईश्वर के साथ हम सभी मूहूर्त ढुढ़ते हैं।
ज्योतिष और वास्तु ज्ञान को मानते हैं।
जन्म मृत्यु और परिवारिक मूहूर्त कहां हैं।
हम सभी भविष्य की सोच में जीते रहते हैं।
न मूहूर्त न भविष्य विधि विधान का नाम हैं।
सच जानो आज को बस अपना मानते हैं।
रंगमंच के किरदार जीवन मृत्यु के साथ हैं।
जन्म दिन न मृत्यु का कभी मूहूर्त निकला हैं।
हर पल हर लम्हा मूहूर्त तेरा मेरा सपना हैं।
आज सुबह बस तेरी अपनी कल न आता हैं।
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र