नेता/मूर्ख दिवस
मूर्ख बनाकर नित यहाँ, ठगते नेता चोर ।
मूर्ख दिवस पर क्या भला, कहें निशा को भोर।। १
मुर्ख बनाकर छिन रहें ,नेता मुँह का कौर ।
मूर्ख दिवस फिर क्या भला, महा मूर्ख का दौर ।। २
नेता अब सेवक नहीं, ताकत में मदहोश।
बस कुर्सी पहचानते, झूठे सफेद पोश।। ३
खींचा तानी में लगा, मचा रहा है शोर।
सब नेता इस देश का, बहुत बड़ा है चोर।। ४
-लक्ष्मी सिंह