मूरही-कचरी ( एकटा हास्य कथा)
मूरही-कचरी
एकटा हास्य कथा।
दिल्ली सँ दरभंगा होयत अपन गाम मंगरौना जायत रही। रस्ते में एकटा नियार केलहूँ जे एहि बेर महादेव मंठ जेबेटा करब। एतबाक सोचैते-सोचैते कखन गाम पहुँच गेलहूँ सेहो नहि बूझना गेल। चारि बजे भोरे अंधराठाढ़ी यानी वाचसपतिनगर रेलवे स्टेशन उतरलहूँ रिक्शावला सभ के हाक देलियै। भोला छह हौ भोला। ताबैत दोसर रिक्शावला बाजल जे आई भोला नहि एलै कियो बाजल जे जोगींदर आयल हेतै तकियौ ओकरा। भोला आ जोगींदर दूनू गोटे गामक रिक्शावला रहैए कोनो बेर गाम जाइ तऽ ओकरे रिक्शा पर बैसि क स्टेशन सॅं गाम जाइत छलहूँ। एतबाक मे जोगींदर ओंघायत हरबराएल आएल अनहार सेहो रहै। वो बाजल कतए जेबै अहाँ। हम मंगरौना जाएब कक्का हमरा नहि चिन्हलहूँ की। हॅं यौ बच्चा आवाज़ सॅं आब चिन्हलहूँ आउ-आउ बैसू रिक्शा पर। दूनू गोटे गप सप करैत बिदा भेलहूँ ताबैत जोगींदर सॅं हम पूछलियै कक्का ई कहू जे एहि बेर बाबाक दर्शन केलहूँ किनहि। हॅं यौ बच्चा एहि बेर सजमैन खूम फरल छलै से हमहूँ चारि बेर बाबा के जल चढ़ा एलहँ आओर हुनका लेल सजमैन सेहो नेने गेल रहियैन। एतबाक में भगवति स्थान आबि गेल हम रिक्शा पर सॅं उतरि के भगवति केँ प्रणाम करैत तकरा बाद अपना आंगन गेलहूँ।
हमरा गामक प्रारंभ में भगवति स्थान अछि। गाम पर गेलहूॅं सभ सॅं दिन भरि भेंट घांट होयत रहल। भिंसर भेलै संयोग सॅं ओहि दिन रवि दिन सेहो रहै। बाबा सॅं भेंट करबाक मोन आओर बेसी आतुर भऽ गेल नियार केलहूॅं जे आई महादेव मंठ जाके बाबाक दर्शन कए आबि। हमरा गाम सॅ किछूएक दूर देवहार गाम में मुक्तेश्वर नाथ महादेवक प्राचीन मंदिर अछि जकरा लोक बोलचाल में महादेव मंठ कहैत छैक। ओना तऽ सभ दिन बाबाक पूजा होइत छलैक मूदा रवि दिन के भक्त लोकनीक बड् भीड़ होइत छलैक किएक तऽ ओहि दिन मेला सेहो लगैत छलै त दसो-दीस सॅ लोग अबैत छल।दरभंगा पढैत रही तऽ हमहूॅं महिना मे एक आध बेर महादेव के जल चढा पूजा कए अबैत छलहॅू। गामे पर भिंसरे नहा के बिदा भेलहूॅं माए हमर फूल बेल पात ओरियान कके देलिह। गाम पर सॅ मुक्तेश्वर स्थान बिदा भेलहॅू पैरे-पैरे जायत रही तऽ जहॉं गनौली गाछी टपलहॅू कि रस्ते में एकटा पिपरक गाछ छलै। ओतए सॅं महादेव मंदिर लगे में रहै। ओहि पिपर गाछ लक एकटा जटाधारी साधू भेटलाह हम कहलियैन बाबा यौ प्रणाम।
एतबाक में बाबा बजलाह जे कहबाक छह से जल्दी कहअ हमरा आई बड् जार भऽ रहल अछि। बाबाक ई गप सूनी कें हमरा कनेक हॅंसी लागि गेल। हम बजलहॅू आईं यौ बाबा अपने सन औधरदानी के कहॅू जार भेलैए। अपने तऽ एनाहियों सौंसे देह भभूत लेप के मगन रहैत छी। बाबा बजलाह हौ बच्चा आब लोक सभ ततेक जल चढ़बैत अछि जे हमरा कॅपकॅपि धअ लैति अछि। तूहिं कहए तऽ एहि उचित जे भक्त सभ हमर देह भिजा के निछोहे परा जाइत अछि। आब तऽ लोक सभ पूजा करै लेल नहि ओ त मूरही-कचरी खाई लेल अबैत अछि। हम बजलहूॅं बाबा अपने किएक खिसियाएल छी आई तऽ हम अहॅाक लेल दूध सेहो नेने आइल छी चलू-चलू मंदिर चलू भक्त लोकनि ओहि ठाम अहॉं के तकैत हेताह। बाबा खिसियाअत बजलाह कियो ने तकैत होयत हमरा तू देख लिहक सभ मूरही कचरी खाए में मगन होयत। तूॅं दरभंगा पढ़ैत छलह तऽ दूध सजमैन लए के अबैत छेलह मुदा जहिया सॅं पत्रकार भए दिल्ली चलि गेलह हमर कोनो खोजो पूछारी नहि केलह।
देखैत छहक मंगरौना चैतीक मेला मे तोहर गामवला सभ लाखक लाख टका खर्च करैत अछि मूदा हमरा लेल भागेश्वर पंडा दिया छूछे विभूत टा पठा दैति अछि। मंगरौनाक चैती मेला बड्ड नामी छलैक ओतए कलकता सॅं मूर्ती बनौनिहार आबि के भगवतिक मूर्ती बनबैत छलैक एहि द्वारे दसो दिस सॅं लोक मेला देखबाक लेल अबैत छलाह। भागेश्वर झा महादेव मंदिरक पंडा रहैत हुनके दिया बाबाक पूजा लेल सभ किछू पठा देल जायत छलैक।बाबा फेर खिसियाअत बजलाह जे आइ हम मंदिर नहि जाएब। हम कहलियैन जे बाबा अपने चलू ने मंदिर अहॉ जे कहबै आई से हेतै आबौ अहॉंक कॅंपकॅंपि दूर भेल किनहि नहि हौ बच्चा आई त हमरा बूझना जाए रहल अछि जा धरि मूरही-कचरी नहि खाएब ताबैत हमर ई जार-बोखार नहि छूटत। कहू त बाबा अपने एतबाक गप जे पहिने कहने रहितहॅू त हम एतबाक देरी] बच्चा कतेक दिन मोन भेल जे तोरा कहिअ जे हमरो लेल किछू गरमा-गरम नेने अबिह मुदा नहि कहलियअ ।हम मंदिर सॅं बाहर निकैल देखैत छलहूॅं जे लोग सभ हमरा जल ढ़ारी के निछोहे मूरही-कचरी वला लक परा जाइत छल एमहर हम एसगर थर-थर कॅपैत रहैत छलहूॅं कियो पूछनिहार नहि। आब लोग हमर पूजा सॅं बेसी अपन पेट पूजा में धियान लगबैत छथि। चलअ आब तहूॅं देखे लिहक जे हम सत्ते कहैत छियअ कि झूठ।
ओही पिपर गाछ लक सॅं हम आओर बाबा बिदा भेलहूॅं रस्ता में बाबा बजलाह जे हम किछू काल मंदिर मे रहब पूजा केलाक बाद हमरा बजा लिहअ। हम कहलियैन हे ठिक छै बाबा हम अपनेक लेल मूरही-कचरी किन लेब तकरा बाद अहॉ के बजाएब त चलि आएब। ओही ठाम सॅं बाबाक संग हम मंदिर पहुॅंचलहूॅं। ओतए देखलिए जे लोग सभ बाबा के जल चढ़ा निछोहे परा जाइत छल। ओना त मिथिलांचल मे मूरही-कचरीक सुंगध सॅं केकर मोन ने लुपलुपा जाएत अछि। हमहूॅं बाबाक पूजा पाठ केलाक बाद मेला घूमए गेलहॅू तऽ सभ सॅं पहिने पस्टनवला लक कचरी किनबाक लेल गेलहूॅं। ओकर कचरी एहि परोपट्ा मे नामी छल। हमरा देखैते मातर ओ अहलाद बस बाजल आउ-आउ किशन’ जी कहू कुशल समाचार। हम कहलियै जे बड्ड निक अपन सुनाबहअ। कचरीवला बाजल जे हमहूॅ ठिके छी दोकान अपना खर्चा जोकर चलि जाएत अछि। अच्छा आब हमरा दस रूपयाक मूरही-कचरी झिल्ली अल्लू चप दए दिहक। ओ हरबराइत बाजल हयिए लिए अखने गरमा-गरम कचरी अल्लू चप सबटा निकालबे केलिए अहिमें सॅं दए दैत छी। हम कहलियै जे दए दहक गरमा गरम एहि मे सॅं।
ओकरा हम पाइ दैत मंदिर दिस बिदा भेलहॅू ओतए पहुॅचतैह हम बाबा के हाक देलियैन मुदा कोनो जवाब नहि भेटल। हम एक बेर फेर हाक लगेलहॅू जे बाबा छी यौ कतए छी जल्दी चलि आउ कचरी सेराए रहल अछि। मुदा बाबाक कोनो प्रत्युतर नहि भेटल। हमरा बुझना गेल जे बाबा फेर खिसियाकेॅे कतहूॅ अलोपित भए गेलाह। दुःखित मोन सॅं हम गाम पर बिदा भेलहूॅं। पैरे-पैरे जाएत रही तऽ जहॉ पिपर गाछ लक एलहूॅं कि ओ जटाधारी साधू फेर भेटलाह। हमरा देखैते ओ बजलाह आबह-आबह तोरे बाट तकैत छलहूॅं जल्दी लाबअ मूरही-कचरी दूनू गोटे मिलि कए गरमा गरमा खाए लैत छी। तकरा बाद पोटरी खौलैत हम बजलहॅू हयिए लियअ बाबा खाएल जाउ। मुदा ई कि ओ फेर ऑखिक सोझहा सॅं कतहॅू अदृश्य भए गेलाह। बाबा सॅं भेंट तऽ भेल ओहि पिपर गाछ लक मुदा बाबाक लेल किनल मूरही-कचरी रखले रही गेल।
© लेखक:- किशन कारीगर
(©किशन कारीगर)