मूकदर्शक
आजकल मैं देखता हूं सभी कल्पना लोक में
जी रहे हैं ,
वास्तविकता को नकार , तथ्यों को झुठला, झूठ की पैरवी कर रहे हैं ,
यथार्थ का कधन कड़वा है , चाशनी में डूबी मीठी बातों की तरह रुचिकर नही है ,
झूठे प्रलोभनों और वादों से सुसज्जित सपनों के सब्जबागों समान प्रतीत हितकर नही है ,
मुफ्तखोरी, मुनाफाखोरी, जमाखोरी, छल- कपट, और भ्रष्टाचार का बाजार गरम है ,
परिश्रम, कर्मनिष्ठा,सत्यनिष्ठा,सदाचार,
सद्व्यवहार की अपेक्षा मात्र भ्रम है ,
कुछ समझ में नहीं आता है , यह परिवर्तन की दिशा है , या कटुसत्य से पलायन ,
अथवा अधोगति अग्रसर प्रयाण ,
मानवीय मूल्यों का हनन , संस्कारों का पतन,
या राक्षसी प्रवृत्तियों के आविर्भाव का प्रमाण ,
मैं यह सब देख प्रतिक्रियाविहींन
जड़ होकर रह जाता हूं ,
मैं किंकर्तव्यविमूढ़ सा एकाकी
मूकदर्शक बना रह जाता हूं ,