मूकदर्शक
कभी-कभी हम बहुत सोचते हैं , आसपास के लोगों के बारे में , जमाने के बारे में , खुद के बारे में ,रिश्तो और दोस्तों के बारे में , सोचने से कुछ कर सकने की स्थिति में ना होने से इस प्रकार के सोचने से कोई प्रयोजन हल नहीं होता है ,
तब इस प्रकार की सोच निरर्थक सिद्ध होती है ।
यह जरूरी नहीं है की हर किसी व्यक्ति को अपनी सलाह दी जाए और उस व्यक्ति को वह सलाह उपयुक्त लगे और उसे स्वीकार करे।
हर किसी व्यक्ति की अपनी व्यक्तिगत सोच होती है जो उसमें निहित संस्कारों , मूल्यों , वातावरणजन्य मानसिकता एवं अनुवांशिक गुणों से निर्मित होती है ।
इसके अतिरिक्त उस व्यक्ति विशेष की व्यक्तिगत सोच पर समूह सोच का अधिक प्रभाव हो सकता है , जिसके फलस्वरुप उसकी सोच में परिवर्तन होने की संभावना नहीं हो सकती है।
अतः यह आवश्यक है इस प्रकार की स्थिति में मूकदर्शक बने रहना ही; अनिमंत्रित सलाहकार बनने से श्रेयस्कर है।
हमारे देश का दुर्भाग्य है कि एक बड़ी जनसंख्या समूह सोच से प्रभावित है , जिसके फलस्वरूप आम जनता में व्यक्तिगत सोच का अभाव है।
देश का राजनीतिक स्वार्थ भी समूह सोच पर आधारित रहकर व्यक्तिगत सोच के विकास में बाधक है।
जिसका परिणाम यह है कि हमारे देश का बड़ा प्रबुद्ध वर्ग विसंगतियों को देखते हुए मूकदर्शक बन कर रह गया है।
प्रज्ञाशील राष्ट्रहित निर्णयों की कमी देश के प्रगतिशील विकास में बाधक सिद्ध हो रही है ,
यह एक कटु सत्य है।