मूंछ का घमंड
बेशक मूंछे शान हैं,
पर न कर अभिमान।
बिना मूंछ के भी हुए,
मानव कई महान।
दाढ़ी मूंछ या शिखा हो,
या फिर सिर के बाल।
बाल बाल सब बाल है,
इनका कौन हवाल।
इनका कौन हवाल,
चलन की बात है भाई।
ये खेती सी होत है,
रख या करो कटाई।
कल तक चलन में मूंछ थी,
अब है मूंछ विहीन।
देश काल की बात ये,
न कोई वीर,न दीन।
जब जी चाहे राख लो,
या कर दो सफा चट्ट।
मूंछ से कोई होत न,
मर्द वीर महाभट।
परम बली श्रीकृष्ण थे,
बली विष्णु भगवान।
बली लखन व राम थे,
मूंछ का नहीं निशान।
विक्रम बत्रा वीर अति,
अरुण,मनोज,व थापा।
जोसेफ,व शैतान से,
दुश्मन थर थर कांपा।
जय शंकर प्रसाद या,
सुमित्रा नंदन पंत।
नेताजी सुभाष थे,
आज़ादी के कंत।
अग्निपँख के जनक को,
कहता देश ‘कलाम’।
बूढ़ा बच्चा युवा भी,
झुककर करे सलाम।
किसी को कमतर आंककर,
न बनिये उत्दण्ड।
वर्तमान में मूंछ का,
नहीं है उचित घमंड।
जैसे तन के बाल सब
मूंछ का वही निरूपण।
दया प्रेम सयंम भगति,
है नर का आभूषण।
मानव बनकर के रहें,
करें सुजन सम काम,
शाम सुबह मद त्याग कर
जपें प्रभु का नाम।