मूँछें : मर्दों की शान
मूँछें : मर्दों की शान
// दिनेश एल० “जैहिंद”
मूँछों पर मैं क्या कहूँ,
मूँछें मर्दों की हैं शान !!
एक वक्त था मूँछों पर,
छोरियाँ दे देती थीं जान !!
काली-पतली-छूरी जैसी
थी मूँछें गोरियों के प्रान !!
लट्टू होतीं ऐसों पर ही,
चलातीं टेढ़े नैनों के बान !!
देख काली नूकीली मूँछें,
कुड़ियाँ फेंकतीं मुस्कान !!
हो जाती थीं फट फिदा,
न्योछावर करतीं अरमान !!
देख कर बड़ी, ऊँची मूँछें,
युवतियाँ भी लेती संज्ञान !!
उम्र का ख्याल किए बिना,
कर देती थीं सारे कुर्बान !!
मूँछ ऐंठते जो वीर बाँकुरे,
भयभीत होते थे पहलवान !!
देख आजाद की तनी मूँछें,
मरते थे किते अँग्रेज जवान !!
पगड़ी-साफा-टोपी के संग
बढ़ जाते हैं मूँछों के मान !!
मिला भगत सिंह को भी,
इन्हीं पैनी मूँछों से सम्मान !!
जब राणा व शिवाजी ऐंठते
देते अपनी मूँछों पे ताव !!
अच्छे-अच्छे भी हिल जाते,
काँप उठते थे उनके पाँव !!
मूँछे तिकोनी करके जोकर
जग को गम से करे हल्कान !!
इन मूँछों का अब मैं भय्या,
कितना-कितना करूँ बखान !!
नहीं दुनिया में मर्द है कोई,
अब उन मूँछवालों के समान !!
मिलती इज्जत उनको ही,
जो रखते मूँछों की पहचान !!
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दिनेश एल० “जैहिंद”
11. 07. 2018