...और फिर कदम दर कदम आगे बढ जाना है
*साम्ब षट्पदी---*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
सजी सारी अवध नगरी , सभी के मन लुभाए हैं
रख हौसले बुलंद तेरी भी उड़ान होगी,
रस्म उल्फत की यह एक गुनाह में हर बार करु।
कौन कहता है ये ज़िंदगी बस चार दिनों की मेहमान है,
अगर "स्टैच्यू" कह के रोक लेते समय को ........
गणित का एक कठिन प्रश्न ये भी
इंतज़ार एक दस्तक की, उस दरवाजे को थी रहती, चौखट पर जिसकी धूल, बरसों की थी जमी हुई।
धार तुम देते रहो
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
सूरज चाचा ! क्यों हो रहे हो इतना गर्म ।
हे दिल तू मत कर प्यार किसी से
ज़िन्दगी थोड़ी भी है और ज्यादा भी ,,