मुख़ौटा_ओढ़कर
#मुख़ौटा_ओढ़कर
रोज-रोज मेरे सपनों में, तुम आने लगी थी /
नये-नये ख़्वाब , ख़्वाबो में सजाने लगी थी //
मुख़ौटा ओढ़कर करीब आना हुआ उनका
ना जाने क्यू इश्क़ मेरा आज़माने लगी थी //
मुख़ौटे पे मुख़ौटा लगाकर दिया धोख़ा ही
फिर नया मुख़ौटा लगा हमे मनाने लगी थी//
जान चुके थे जाँ किया नही था प्यार हमसे
आड़ मुख़ौटे का लेकर हमे रुलाने लगी थी//
हर बात भुलाकर संग उनके बढ़ने लगा था /
पर वो तो मुख़ौटे पे मुख़ौटा चढ़ाने लगी थी //
स्वरचित / मौलिक
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुंद (छः ग)