मुक़द्दर
:- ग़ज़ल
गुज़ार दी हमने उमर तन्हा
इश्क़ उधर तो मैं इधर तन्हा
मुक्कदर में वो हमसफर न था
रात में रह गये अधर तन्हा
तुमसे जिन्दगी खुशगवार थी
तुम गये हुई महफिले तन्हा
छा गया हुस्न का असर हमपे
भीड़ में भी लगा शहर तन्हा
दौर ए गर्दिश में लड़खड़ा कर
तय किया जिस्म ने सफर तन्हा
पी जाते कब का ज़हर ‘साहिल’
जीवन में होते अगर तन्हा
✍️सूर्य करण सोनी
12/2/19