मुहावरों पर कविता
जब हम उनकी दाल नहीं गलने देते हैं,
उस समय उनके दांत खट्टा हो जाते है।
जब किसी के दर जाकर, मुंह काला करवा आते हैं,
उनके अपनों की छाती में मानो, जैसे सांप लोट जाते हैं।
जब वो चूड़ियां पहन कर मेरे पास आते हैं,
हमारे मनोबल तो सोने में सुहागा हो जाते हैं।
वो बने सीधे साधे मुख में राम बगल में छुरी रखते हैं,
सच्चाई सामने आने के बाद हर कोई उंगली उठाते हैं।
जब तक रहता है हमसे काम,वो अपना नाक रगड़ते हैं,
कार्य सिद्ध होने बाद, हर कोई पीठ दिखा भाग जाते हैं।
पापड़ बेलते वो हमें हराने को, हर कोशिश करते हैं,
हम अड़े रहते हैं, उनका अंग अंग ढीला हो जाते हैं।
© अभिषेक श्रीवास्तव “शिवाजी”
शहडोल मध्यप्रदेश