मुहब्बत
मुहब्बत (गज़ल )
सनम तुम से यूँ मोहब्बत करके |
जी रही हूँ मैं यहाँ पर अब मरके॥
मैं कह तो देती फ़साना अपना |
सहम जाती हूँ मैं जहाँ से डरके॥
बढ़ते जाते हैं सितम दुनिया के |
लोग थकते नहीं लेकिन करके॥
तेरे ईश्क की मैं जोगन दिवानी |
पागल बनी मैं तुम्हें प्यार करके॥
तुम में बना लूंगी मैं छाप अपनी |
एक रोज मोहब्बत के रंग भरके॥
तुम हो ईबादत तुम हो उपासना |
तुमको ही चाहा है रहबर करके ॥
– डॉ० उपासना पाण्डेय, प्रयागराज