मुहब्बत
मुहब्बत जताने के दिन आ रहे हैं।
गज़ल गुनगुनाने के दिन आ रहे हैं।
जो कहते थे मरते सनम हम तुम्हीं पर
उन्हें आजमाने के दिन आ रहे हैं।
हथेली में दिल को चले हम तो लेकर
कि मिटने मिटाने के दिन आ रहे हैं।
गली में लगे घूमने फिर से मजनू ।
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं।
जो हमको नचाते रहे उँगलियों पर
उन्हें अब नचाने के दिन आ रहे हैं
वही रंगरलियाँ शरारत की घड़ियाँ
वो हँसने हँसाने के दिन आ रहे हैं।
बहारों का मौसम गुलाबों की खुशबू
कि बाहों में जाने के दिन आ रहे हैं
भुला दो गमों को सभी पुष्प अपने
तराने सुनाने के दिन आ रहे हैं
पुष्प लता शर्मा