मुहब्बत है साहब तिजारत नहीं है
पाना ही उल्फत मे चाहत नहीं है
मुहब्बत है साहब तिजारत नहीं है
इबादत है मेरी उसे याद करना
मुझे अपने रब से शिकायत नहीं है
खताओं को अपनी उसके सर रख दूँ
ऐसी भी अपनी तबीयत नहीं है
इन्कार करने का होगा कोई मकसद
सच ये भी नहीं कि मुहब्बत नहीं है
वसूलों की दौलत न छीनो “अयन” से
सिवा इसके कोई अमानत नहीं है
M.Tiwari”Ayan”