मुहब्बत मे मुहब्बत का हि मंजर तक नही आया ।
ग़ज़ल ।।
मुहब्बत मे मुहब्बत का हि मंज़र तक नही आया ।
थका मै ढूढ़ मंजिल को मेरा घर तक नही आया ।।
मिली सौगात दिल की है यहां सबको मुहब्बत मे ।
मेरे नाचीज़ हिस्से मे पत्थर तक नही आया ।।
रहा ताउम्र तन्हा ग़म किसे मै बेवफा कहता ।।
समझ मे प्यार का मतलब उम्रभर तक नही आया ।।
लकीरें हाथ मे कब तक बढ़ेगी उम्र की यारो ।
मिली जो मौत हाथों मे ख़ंजर तक नही आया ।।
भरोशा था कभी शायद क़िस्मत का करिश्मा हो ।
उम्र ही ढल गयी सारी मुक़द्दर तक नही आया ।।
पड़ा बरसों से सूना है घरौंदा प्यार का रकमिश ।
वफ़ा की बूं नही आयी सितमगर तक नही आया ।।
राम केश मिश्र