मुहब्बत मेँ मजे कम
कोई मजबूर कहता है कोई जाहिल समझता है
मगर वो अपने भाई को सदा लक्ष्मण समझता है
मुहब्बत मेँ मजे कम और खतरे ढेर सारे हैँ
इसे बस तू समझती है या फिर सागर समझता है
कोई मजबूर कहता है कोई जाहिल समझता है
मगर वो अपने भाई को सदा लक्ष्मण समझता है
मुहब्बत मेँ मजे कम और खतरे ढेर सारे हैँ
इसे बस तू समझती है या फिर सागर समझता है