मुहब्बत क्या बला है
बैठ तन्हा सोंचता अक्सर, मुहब्बत क्या बला है ।
प्यार में खुशियाँ बहुत कम, दर्द का साया घना है ।
रात दिन हो एक जैसा, दिल में गर बेचैनियाँ हो,
तब समझ लेना मुकम्मल इश्क़ तुमको हो गया है ।
उसको पाने की ख़ुमारी तुमको जीने तक न देगी,
प्यार के चंगुल में फँस हर शख़्स बस पागल हुआ है ।
ख़्वाब सारे धो गई बेमौसमी बरसात आकर,
दूरियाँ, तन्हाई, जख़्मों के अलावा क्या मिला है ।
मानता ‘अरविन्द’ मुश्किल प्यार को पाना जहाँ में,
पर अगर मिल जाये तो इसके सिवा फिर और क्या है ।
✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०