मुहब्बत का गुल खिला कैसे
दिल ए बाम में मुहब्बत का गुल खिला कैसे
मुझ को सारी रात ये सोच कर रोना आया
उस मकां में जो रहता था एक शख्स
उसके धुआं हो जाने पे भी रोना आया
~ सिद्धार्थ
खता अपनी हो तो औरों को खतावार नहीं ठहराया जाता
मरी हुई मछलियों को धारा के विपरीत नहीं बहाया जाता
~ सिद्धार्थ