मुहब्बत का खुला बाज़ार देखा है
मुहब्बत का खुला बाज़ार देखा है
यहाँ जिस्मों का इक व्यापार देखा है
कभी रुत्बा नहीं देखा ज़माने में
सदा किरदार अपना यार देखा है
किसी को भी तसल्ली है नहीं देखा
जहाँ में हर कोई बेज़ार देखा है
नहीं वो जानता क्या चीज़ बीमारी
किसी ने गर नहीं आज़ार देखा है
वहाँ सज़दे में झुकता सर हमेशा से
जहाँ खिलते हैं दिल दरबार देखा है
चली हैं गोलियाँ भी बेगुनाहों पर
ज़माने में जफ़ा का वार देखा है
फ़रेबो-चाल से धोखा दिया करता
गया वो आदमी जब हार देखा है
किसी के वक़्ते-मुश्किल में हमेशा ही
इसी ‘आनन्द’ को तैय्यार देखा है
शब्दार्थ:- बेज़ार=अप्रसन्न/खिन्न, आजार=रोग/बीमारी/कष्ट/दुख/पीड़ा, जफ़ा=अत्याचार/ज़ुल्म/अन्याय पूर्ण कार्य
– डॉ आनन्द किशोर