मुहब्बत करके वो डरता रहा है
मुहब्बत करके वो डरता रहा है
सनम का नाम ही जपता रहा है
मिली है क्यों जफ़ा इश्क़ में उसे ही
दिया सा रात भर जलता रहा है
बिताई ज़िन्दगी है मुफलिसी में
नमक का हक़ अदा करता रहा है
जुबाँ से निकले न कोई हर्फ उसके
सितम वो हंस के ही सहता रहा है
खुदा के ही दर पर कर ले दुआ हम
कयामत का कब किसे पता रहा है
मिलन की सनम से जो रुत आई है
दिल कँवल का बस धड़कता रहा है