” मुहब्बत कब तलक होगी , इशारों के सहारों से “
मुहब्बत कब तलक होगी , इशारों के सहारों से
निकल आना तुम्हें होगा, इन कागज की दीवारों से
तुम्हें परदे की ख्वाहिश हैं, हमें करनी गुजारिश है
मगर मुमकिन नहीं होगा, ये परदों की दरारों से।
मुहब्बत कब तलक होगी, इशारों के सहारों से
कहोगे तुम हमें कैसे, अगर इतनी हया होगी
न मानूँगा मैं वो बातें, जो आँखों से बयाँ होंगी
तुम्हें कहना ही होगा ये, लबों के दो किनारों से
मुहब्बत कब तलक होगी, इशारों के सहारों से
कभी रस्मों रिवाजों को, तुम्हें न तोड़ कर आना
न अपनों को न गैरों को, तुम्हें न छोड़ कर आना
बनाने हैं सभी अपने, समर्पण की बयारों से
मुहब्बत कब तलक होगी, इशारों के सहारों से
मुलाकातें तो होती हैं, हमारी रोज ख्वाबों में
मिलोगे कब हमें ऐसे, बिना परदें नकाबों के
दीवाने हो गये हम तो, नजाकत के श्रृंगारों से
मुहब्बत कब तलक होगी, इशारों के सहारों से
कुमार अखिलेश
देहरादून (उत्तराखण्ड)
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