मुहब्बत इक सज़ा
दिलों का ये मिलन झूठा बहाना है ,
उसे तो खाक़ में मुझको मिलाना है .
कटे पर के परिन्दे को कहे , उड़ जा ,
उसे दो जुगनुओं में अश्क लाना है .
हवा मदमस्त सी बन के उठी आँधी ,
किसी का आशियाँ , उसको गिराना है .
लबों पे बद दुआ , आने न पायेगी ,
अभी तक प्यार का , दिल में ठिकाना है .
यहाँ पर रौशनी कैसे चली आई,
चरागों को बुझे बीता ज़माना है .
तुम्हारा दर्द दौलत है ‘अना’ मेरी ,
सिले लब खींच के ,अब मुस्कुराना है .
अनीता मेहता ‘अना’