मुहब्बतनामा
मुहब्बत नामा
एक दिन मैंने सोचा
मुहब्बत की किताब
दिल की ज़मीन पे खोलू तो ज़रा…….
बस क्या था
अक्स उसका ही सामने आ गया
एक हसीनों-जमील पैकर
एक खूबसूरत सा सरापा
जिस्का चेहरा माहताब
जिस्की आंखे ख्वाब..
जिस की बातें लाजवाब
जिस की हंसी में रोशनी ए-आफताब…
जिस की चाल में बला की तेजी
जिस्की तबियत में बेहद….प्यार
और ……………………………
………जिसके सिर्फ होने के एहसास से ही लगे
हम तो दुनिया की सब से अमीर शय है.
कसम खुदा की ये सोच के ही
खुद पर नाज आ गया:
एक अनोखा सा दिल को
.करार आ गया
और ……………… अब इससे आगे क्या कहूं
बाकी दुनिया की सारी दौलते हैच है तेरे आगे..
हम तो बस इसी धुन में जिए जा रहे हैं
ऐ” “मुहब्बत.. तुझे सजदा किया जा रहे है…
सुन..
ऐ-मुहब्बत…………
जिस ने तुझे पा लिया है
बस ये समझो
के उसे ने खुदा को पा लिया
जमाना मेहरबान हो के ना हो
खुदा के घर में तूने अपना घर बना लिया है
जिंदगी का तूने..ऐ मुहब्बत नया
अगाज़
कर दिया है
इसिलिये ए(मुहब्बत) हम्ने तुझे मुमताज कर दिया. है.. शबीना नाज़