Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Jan 2023 · 7 min read

मुस्तफ़ा

मुस्तफ़ा ” अलीबाबा और चालीस चोर ” की कहानी में उस दर्ज़ी का नाम था जिसे मर्ज़ीना अंधेरी आधी रात में बुला कर लाई थी और उसने बड़ी सफ़ाई से एक दिये की मंद रोशनी में क़ासिम की लाश के चार टुकड़ों को जोड़ कर एक ज़िस्म बना कर कफ़न में सी दिया था । उसकी सिलाई का कौशल और आधी रात में मर्ज़ीना का उस पर भरोसा देख कर डॉ पन्त जी को लगता था कि वो निश्चित रूप से उस ज़माने का कोई लेडीज़ टेलर रहा हो गा । उस ज़माने से चला आ रहा किसी महिला का किसी डॉक्टर से ज़्यादा लेडीज़ टेलर पर का यह भरोसा करना आज भी उसकी महिला ग्राहकों में बरक़रार है ।

जब कभी डॉ पन्त जी को पत्नी के साथ कभी किसी लेडीज़ टेलर की दुकान पर जाने का मौका मिला तो वहां का अजीब मंज़र उनके लिये हमेशा कौतूहल का विषय बना रहा । वहां मुग़लकालीन किसी मीना बाज़ार में स्थित व्यस्त दुकान के भीतर असन्तुष्ट महिला ग्राहकों की कभी न छंटने वाली एक भीड़ के अस्पष्ट कोलाहल से उन्हें लगता था कि उनमें से अधिकतर उस दर्ज़ी के द्वारा एक बार सिले गए कपड़ों को दूसरी तीसरी बार मात्र फिटिंग कराने लाई हैं न कि कोई नया कपड़ा सिलवाने । जिस प्रकार उनके ओपीडी की भीड़ में एक दो मरीज़ ही नये होते हैं और ज़्यादातर पुराने अपना इलाज दोहराने के लिए या फिर एक सप्ताह में दो बार फ्री में दिखाई को वसूलने के मक़सद से भीड़ जुटाए रहते हैं । पन्त जी को उसकी दुकान के बाहर खड़ा कर अभी आयी कह कर उनकी पत्नी अंदर प्रवेश कर गयीं । पन्त जी बड़ी देर तक नज़रें ज़मीन में गड़ाए संकोची भाव से उसी तरह खड़े हो कर पत्नी के बाहर आने की प्रतीक्षा कर लगे जिस प्रकार चलती सड़क पर स्थित पुरुषों के बाल काटने वाली नाई की दुकान के चौड़े खुले दरवाज़े के आगे किसी भद्र महिला को अकेली प्रतीक्षारत खड़ा कर पति अभी आता हूं कह कर बाजार की भीड़ में घुस जाये । वहां खड़े – खड़े उनका एक – एक मिनट , एक – एक घण्टे के समान गुज़र रहा था । बीच बीच में उचटती निगाह से अंदर झांकने पर लगता था कि वहां आई हर महिला अपने घर के सारे काम निपटा कर बड़ी फुर्सत में आई है । इस बीच वहां पत्नी के इन्तज़ार में लंबे समय तक खाली खड़े खड़े उन्हें अपने गोरखपुर प्रवास के दिनों में सुने दर्ज़ियों के उपहास पर बने कुछ व्यंगात्मक , भोजपुरी द्विअर्थी , अर्द्धशालीन लोकगीतों के लजाते अर्थ , भावार्थ समेत चरितार्थ होते नज़र आ रहे थे । हमेशा की तरह कुछ देर में ही उन्हें किसी चाट गोलगप्पे वाले की तरह उस दर्ज़ी का व्यवसाय भी लागत और लाभ के अनुपात की द्र्ष्टि से अपनी डाक्टरी से अधिक भला लगने लगा । कुछ देर बाद इस कुंठा को त्याग कर वो अपने को खुशकिस्मत समझ रहे थे कि पुरुषों को ज़िन्दगी में कभी किसी दर्ज़ी के पास दुबारा इतनी फिटिंग के लिए नहीं जाना पड़ता है , जब जिसने जैसा सिल दिया , हिलगा लिया बाकी का काम बेल्ट ने सम्हाल लिया । उन्हें लगता था इस मिस्फिटिंग के लिए दर्ज़ी से ज़्यादा महिलाओं में चन्द्र कलाओं के अनुरूप उनकी काया में पानी की मात्रा के उतार चढ़ाव से होने वाला रूप – रेखा का परिवर्तन इसके लिए अधिक ज़िम्मेदार था या उनकी छिद्रान्वेषी संवेदनात्मक प्रकृति ये किसी वैज्ञानिक विवाद का विषय हो सकता था ।

उस दिन काफी इंतज़ार के बाद पत्नी को उसकी दुकान के अंदर से सुरक्षित निकलता देख कर अपनी इंतज़ार की घड़ियां समाप्त जान कर वो निश्चिंत हो प्रसन्नता से भर उठे । बाहर निकल के मोटरसाइकिल की पिछली सीट पर बैठती हुई डॉ श्रीमती पन्त जी , अपने पतिदेव डॉ पन्त जी की ओर इशारा करते हुए टेलर मास्टर साहब से बोलीं –

” मास्टर साहब सिले कपड़े इनको दे दीजियेगा गा , ये लेने आयें गे ”

वहां खड़े हो कर ” इनको ” शब्द के साथ पन्त जी की पहचान टेलर मास्साब से करवाते हुए डॉ पन्त जी को लगा कि वहां खड़ी कुछ अन्य महिलाओं की निगाहें भी यह सुन कर उन पर टिक गयीं थीं , जो शायद ऐसे सभ्य , सुशील , आज्ञानकारी , गुलाम नस्ल के पति जो अब कभी कभार ही देखने को मिलते हों गे की सराहना और संवेदना में उनकी ओर उठ गयीं थीं। अपनी समझ के अनुसार अपने ऊपर टिकी उन महिला ग्राहकों की भीड़ में से कुछ

की निगाहों में हीरो बने पन्त जी ने उन समस्त महिलाओं पर एक उचटा सा अंतिम , क्षणिक दृष्टिपात कर डाला जिसने उनके अंदर दबे मर्द के स्वाभिमान को जगा दिया , उन्होंने सोचा अब खाली शर्मा कर चुप रहने से काम नहीं चलने वाला था , क्यों कि पन्त जी इतनी देर उस लेडीज़ टेलर की दुकान के बाहर खड़े रहने के बाद समझ चुके थे कि ये एक बार के चक्कर में सही फिटिंग के कपड़े सिल कर देने से रहा , और इसके लिए ये उन्हें अभी कई चक्कर कटवाए गा अतः उन्होंने लज्जा एवम संकोच त्याग कर , सारी हिम्मत बटोर कर अपने चक्कर बचाने के उद्देश्य से टेलर से अनुनय विनय पूर्वक कहा –

” मास्टरसाहब एक गुज़ारिश है , यदि एक बार में आप सही नाप के कपड़े सिल कर दे दें गे , तो मैं आपको ख़ुशी ख़ुशी सिलाई की दुगनी रकम दूं गा ।

मास्साब पन्त जी की इतनी बात सुन कर अपनी दुकान पर अपने सामान्य ग्राहकों से इतर तन धारी और स्थान विशेष अनुरूप अंगविहीन प्राणी को खड़ा बहसियते पा कर विस्मित हो गये । फिर उन्होंने अपने पतले चेहरे पर गड्ढ़े में धँसे गालों और कोटर में धँसी आंखों के बीच इंचीटेप के फीते समान लम्बी नाक पर टिके चश्मे को ऊपर उंगली से चढ़ाते हुए जिसकी एक कमान सफ़ेद डोरी से कान पर अटका रखी थी अपनी कैंची की धार समान पैनी दृष्टि से एक Male Gynaecologist के जैसे देह भाव धर , मौखिक रूप से पन्त जी को कुछ जवाब देना चाहा , पर इससे पहले कि उन दोनों में कुछ नर्म गर्म कहा सुनी हो पाती , डॉ श्रीमती पन्त जी ने अपनी वही उंगली जिस पर वो पन्त जी को नचाती थीं कड़ी कर के उनकी कमर पर चुभा दी । पत्नी प्रदत्त यह मौन अंकुश प्रहार पन्त जी के यह समझाने के लिये काफी था कि इस आदमी से उनको पंगा नहीं लेना है , क्यों कि अभी उनको अपने उसी घर में लौट कर जाना है जहां वो उनके साथ रहते हैं । अतः वो मर्दानगी न झाड़ते हुए वहां से मास्साब का उत्तर अनसुना कर के आगे चल दिये । मास्टरसाहब पुनः निर्लिप्त भाव से अपनी कभी न सन्तुष्ट हो सकने वाली महिला ग्राहकों की भीड़ को संतुष्ट करने के प्रयास में लग गये ।

=============

डॉ पन्त जी के घर पर एक अधेड़ दर्जी भी उनके घर का रास्ता देख कर परक गया था । वो लेडीज़ टेलर होने के साथ साथ डॉ श्रीमती पन्त जी के द्वारा बताई गई रूपरेखा के अनुसार अन्य वेशभूषाओं , ओ टी के कपड़े , पर्दे गाउन आदि को भी सिल कर तैयार करने में दक्ष था । वह उनके घर पर ही रह कर उन्हीं की सिलाई मशीन पर दिहाड़ी , अर्थात रोज़नदारी पर सिलाई करने में सिद्धहस्त था । बस उसमें दो ही खराबियां थीं –

पहली कि ज़रूरत पड़ने पर उसे जब कभी मोबाइल पर सन्देश दे कर घर बुलाना चाहो तो अक्सर वो रटाया मात्र एक ही बहाने वाला उत्तर दिया करता था –

पहला कि आज या अमुक दिन मैं नहीं आ पाऊं गा , मुझे शादी में जाना है ।

दूसरा कि जब तक मैं काम करूं गा , मेरे भोजन पानी की व्यवस्था उन्हें ही करनी हो गी ।

वह मधुमेह या थायरोटोक्सिकोसिस का रोगी न होनेके बावज़ूद थोड़ी थोड़ी देर में सामान्य भर थाली भोजन के अलावा ऊपर से चाय , बिस्कुट , पराठे , समोसे आदि खाता रहता था । पन्त जी के यहां भी उसकी इन फरमाइशों का खुल कर स्वागत होता था , उनका विश्वास था कि हर कोई अपने भाग्य का खाता है अतः उसे जीमता देख हर किसी को प्रसन्नता होती थी तथा उसकी आवभगत में कभी कोई कमी न होने पाए इसका उनके परिवार में हमेशा ध्यान रखा जाता था ।

पर उसका अनुपस्थित हो कर इतनी बार और हर बार शादियों में ही जाने का बहाना ( और थोड़ी थोड़ी देर में खाते रहना ) वाली यह जीवन शैली डॉ पन्त जी के चिकित्सीय अनुभव के लिए एक चुनौती बनी हुई थी ।

एक बार पन्त जी ने कौतूहलवश उससे इसका कारण जानने के लिये पूंछ ही लिया –

” मास्टरसाहब आप अक्सर इतनी शादियों में क्यों जाते हो ? आख़िर आपके कितने रिश्तेदारों के यहां आये दिन कैसे इतनी शादियां होती रहतीं है ? ”

इस पर वो टेलर मास्टर साहब हंसते हुए बोले –

” डॉक्टर साहब मैं बाल्मीकी समाज का पुरोहित हूं और अक्सर मुझे उनकी शादियां करवाने जाना पड़ता है । मैंने आज़तक न जाने कितने आई ऐ एस , आई पी एस , पी सी एस आदि अफसरों की शादियां करवाई हैं ये सिलाई तो मेरा अंशकालिक व्यवसाय है ”

पन्त जी उनकी बाल्मीकि समाज के हित को समर्पित इस गुणी प्रतिभा से बड़े प्रभावित हुए और उन मास्टर साहब के प्रति उनका सम्मान और अधिक बढ़ गया । डॉ पन्त जी अब यह भी समझ गये थे कि शादी ब्याह के माहौल में थोड़ी थोड़ी देर में व्यंजनों की आवभगत के अभ्यस्त मास्टरसाहब ने उसी वैवाहिक माहौल में थोड़ी थोड़ी देर में इतनी हाज़मा शक्ति कैसे हासिल कर ली हो गी ।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 2 Comments · 199 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
ईश्वर के सम्मुख अनुरोध भी जरूरी है
Ajad Mandori
यूं ही कोई शायरी में
यूं ही कोई शायरी में
शिव प्रताप लोधी
धुन
धुन
Sangeeta Beniwal
होली
होली
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
परोपकार
परोपकार
ओंकार मिश्र
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
कैद है तिरी सूरत आँखों की सियाह-पुतली में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
मन के वेग को यहां कोई बांध सका है, क्या समय से।
Annu Gurjar
पितरों का लें आशीष...!
पितरों का लें आशीष...!
मनोज कर्ण
सितमज़रीफ़ी
सितमज़रीफ़ी
Atul "Krishn"
जीवन में संघर्ष सक्त है।
जीवन में संघर्ष सक्त है।
Omee Bhargava
ज़िंदगानी
ज़िंदगानी
Shyam Sundar Subramanian
दोहा बिषय- दिशा
दोहा बिषय- दिशा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
मुनाफे में भी घाटा क्यों करें हम।
सत्य कुमार प्रेमी
पोषित करते अर्थ से,
पोषित करते अर्थ से,
sushil sarna
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
3747.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
जब भी सोचता हूं, कि मै ने‌ उसे समझ लिया है तब तब वह मुझे एहस
पूर्वार्थ
"नजर से नजर और मेरे हाथ में तेरा हाथ हो ,
Neeraj kumar Soni
गजल सगीर
गजल सगीर
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
हरवंश हृदय
बच्चे
बच्चे
Dr. Pradeep Kumar Sharma
राष्ट्र हित में मतदान
राष्ट्र हित में मतदान
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
ना जाने क्यों जो आज तुम मेरे होने से इतना चिढ़ती हो,
Dr. Man Mohan Krishna
अगर प्रेम है
अगर प्रेम है
हिमांशु Kulshrestha
अनुभव 💐🙏🙏
अनुभव 💐🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
दर्द ना अश्कों का है ना ही किसी घाव का है.!
शेखर सिंह
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
*किसकी है यह भूमि सब ,किसकी कोठी कार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव
ओ अच्छा मुस्कराती है वो फिर से रोने के बाद /लवकुश यादव "अज़ल"
लवकुश यादव "अज़ल"
#चिंतनीय
#चिंतनीय
*प्रणय*
"समरसता"
Dr. Kishan tandon kranti
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
मुझे जीना सिखा कर ये जिंदगी
कृष्णकांत गुर्जर
Loading...