* मुस्कुराने का समय *
** गीतिका **
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आ गया है मुस्कुराने का समय।
कुछ नया कर के दिखाने का समय।
ओस में भीगी हुई कलियां सभी।
देखती हैं भोर आने का समय।
भाव मन के जब अधर पर आ रहे।
है यही कुछ गुनगुनाने का समय।
हो चुके सपने सुहाने अब बहुत।
चाहतों के जाग जाने का समय।
अब उलझनों को देख डर जाना नहीं।
सामने है पार पाने का समय।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १४/१०/२०२३