मुस्कुराना टूटकर भी
मुस्कुराना टूटकर भी, कुदरत का वरदान है,
अभी इस तज़ुर्बे से, इंसा बहुत अंजान है।
ये हुनर जिसमें भी है, वो जियेगा शौक से,
जो इसे समझा नही, वो बहुत ही नादान है।
मुस्कुराना टूटकर भी, कुदरत का वरदान है,
अभी इस तज़ुर्बे से, इंसा बहुत अंजान है।
ये हुनर जिसमें भी है, वो जियेगा शौक से,
जो इसे समझा नही, वो बहुत ही नादान है।