मुस्कुराते रहे
ज़ाम भर भर ऩजर से पिलाते रहे
मुझको दीवाना अपना बनाते रहे
नाज़ नखरे दिखा कर इशारों में ही
दूर से पास अपने बुलाते रहे
हाल पूछा न गुजरा भला या बुरा
साज़े- दिल के तराने सुनाते रहे
सामना कर सके जो न हालात का
ख्वाब आँखों में बस वो सजाते रहे
कह नहीं पाए जज्बात अपने कभी
बोझ दिल पर लिए मुस्कुराते रहे
शाम हर रोज उनकी ही अब याद में
चुपके चुपके ग़ज़ल उनकी गाते रहे
तूने सोचा सुधा होगा अंजाम क्या
राह में तो हमें सब डराते रहे
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
16/7/2023
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